जिस प्रकार दक्षिण में नबुद्रीपाद ब्राह्मण श्रेष्ठ माने जाते हैं, उसी प्रकार उत्तर में औदीच्य ब्राह्मणों को श्रेष्ठ माना जाता रहा है। अर्वाचीन भारत में गुजरात के अन्य राजाओं से आमंत्रण मिलने पर ये औदीच्य मेवाड़, खानदेश, जयपुर, बूंदी, मालवा, आगरा, मथुरा, अनूपशहर तथा दोआब के अन्य शहरों तथा वाराणसी, आरा और पटना तक जाकर बस गए। विभिन्न स्थानों से गुजरात में लाए गए ब्राह्मणों में से ज्यादातर औदीच्य ब्राह्मण उत्तर (पंजाब और सरहदी इलाकों) से नहीं परन्तु पूर्व के इलाके हरिद्वार, कान्यकुब्ज, सरयू, अयोध्या, काशी इत्यादी से लाए गए थे। हिमाचल में आज भी औदीच्य अटक के ब्राह्मण विद्यमान हैं, जो चार भागों में बंटे हुए हैं। दुआबा, परबती, पठानती और पख्तून। इनकी भाषा उर्दू मिश्र हिंदी है। ये संस्कृत और क्रिया कांड के विद्वान हैं। इनके आचार-विचार और संस्कार विशुद्ध प्रमाणित हैं।  उत्तर-प्राच्य से चुने हुए ब्राह्मणों को गुजरात के चालुक्य वंश के राजा मूलराज ने निमंत्रित किया और अपने राज्य में बसाया।  उत्तर दिशा से आए इसलिए उन्हें औदीच्य कहा गया या वहां के वे पहले से ही औदीच्य थे, यह चर्चा हो चुकी है क्योंकि यदि उत्तर से लाए गए ब्राह्मणों को औदीच्य कहा गया तो पूर्व से लाए गए ब्राह्मणों को प्राच्य क्यों नहीं कहा गया? क्योंकि औदीच्य की इ.सं. 994 यानी विक्रम संवत 1050 के अरसे में लाया गया अतः उस समय की राजनीतिक तवारीख जानना जरूरी है।  

वल्लभी वंश समृद्ध संस्कृति 

आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व गुजरात में वल्लभी वंश का राज्य था और उनकी राजधानी वल्लभीपुर थी।  यह एक समृद्ध संस्कृति थी, जिसके अवशेष भावनगर के पास वड़ा ग्राम में उपलब्ध हुए हैं।  वल्लभी वंश के अंत के पश्चात सिंहपुर, जिसे वर्तमान में सीहोर (गुजरात) कहते हैं, वहां आर्य सस्कृति वृहद प्रमाण में सक्रिय थी।  परन्तु इसके पश्चात का इतिहास अंधकार में है।  सातवीं सदी के अंत में गुजरात में कच्छ के छोटे रण प्रदेश में एक पंचासर नामक गांव में चावड़ा वंश का राजा जयशिखरी था।  इसी जयशिखरी के लगाकर गुजरात का श्रेणीबद्ध इतिहास उपलब्ध है।  इसी जयशिखरी के पुत्र वनराज चावड़ा ने सन 750 के अरसे में अनहिलपुर पाटण शहर बसाया और उसे अपनी राजधानी बनाई।  चावड़ा वंश का राज्य शासन इस प्रकार है- 1-जयशिखरी सन 696 से 746, 2-वनराज सन 746 से 806, 3-योगराज सन 806 से 842, 4-क्षेमराज सन 842 से 866, 5-भुवडराज सन 866 से 895, 6- वैतसिंह राज सन 895 से 920, 7-रत्नादित्य राज सन 920 से 935 और 8-सामंतसिंह सन 935 से 942।  इस प्रकार चावड़ा वंश ने गुजरात पर लगभग 200 वर्ष राज्य किया।  

विशाल हिंदू राज्य की स्थापना

कन्नौज (कान्यकुब्ज) के चालुक्य वंश के राजकुमार से सामंतसिंह ने अपनी बहन लीलावती का विवाह किया था। उसी लीलावती का पुत्र मूलराज, जो मूल नक्षत्र में उत्पन्न हुआ था, वह अपने मामा सामंतसिंह के पास रहता था। सामंतसिंह को कोई संतान नहीं थी। सामंतसिंह मूलराज को पुत्रवत ही रखता था। उसी मूलराज ने मामा सामंतसिंह का वध करके पाटण की राज गद्दी हासिल की। उसने बाद में सौराष्ट्र, कच्छ, जूनागढ़, दक्षिण गुजरात के छोटे-छोटे परगनों के दरबारों को वश में कर विशाल हिंदू राज्य की स्थापना की। इसे चालुक्य वंश और बाद में सोलंकी वंश कहा गया। उसके राज्य का इतिहास इस प्रकार है-

1-मूलराज सन 942 से 997, 2-चामुंडराज सन 997 से 1010, 3-दुर्लभराज सन 1010 से 1022, 4-भीमदेव (प्र.) सन 1022 से 1072, 5-कर्णदेव सन 1072 से 1094, 6-जयसिंह (सिद्धराज) सन 1094 से 1143, 7-कुमार पाल सन 1143 से 1174, 8-अजय पाल सन 1174 से 1177, 9-मूलराज (द्वि.) सन 1177 से 1197, 10-भीमदेव (द्वि.) सन 1179 से 1223 और 11-त्रिभुवनदेव सन 1223 से 1244। 

घोलक में सोलंकी वंश की शाखा ‘वाघेला’ नाम से जानी जाती थी। 1244 के बाद वाघेला वंश ने पातण पर राज्य किया। 

1-विशलदेव सन 1244 से 1264 

2-अर्जुनदेव  सन 1264 से 1275 

3-सारंगदेव  सन 1275 से 1297 

4-करणदेव  सन 1297 से 1304 

ऊपर बताए गए 300 वर्षों से औदीच्य ब्राह्मणों का सीधा और स्पष्ट संबंध है। औदीच्य ब्राह्मणों का मूल इतिहास वर्ष 950 के आसपास से पाया जाता है। 

विशाल और भव्य मंदिर का विचार 

गुजरात के राजा सामंतसिंह का भानेज मूलराज मूलतः कन्नौज के पाशुपत पंथ का शैव था। अतः मूलराज का धर्म भी ‘शैव’ था। उसने अपने शासन काल में सिद्धपुर में सरस्वती नदी के किनारे ‘रुद्रमाल’ (रुद्र महालय) के नाम से एक विशाल और भव्य मंदिर निर्मित करने का विचार किया। रुद्र शब्द का एक शब्दार्थ एकादश भी होता है, अतः रुद्र महालय 11 मंजिल का हो, ऐसा उसका इरादा रहा होगा। 

राजा मूलराज के समय में सरस्वती नदी के पास एक पर्णकुटी में नाथ संप्रदाय के योगी रहते थे। अपने जीवन के संध्याकाल में राज मूलराज उनसे बहुत प्रभावित था। राज ने नाथ सम्प्रदाय के उन योगी, जिन्हें कंथडी महाराज के नाम से जाना जाता था, को अपना गुरु बनाया। स्वयं के मामा का सन 942 में वध करके बड़ा पाप किया है और मातृपक्ष के साथ द्रोह किया है, यह दुःख उसे वृद्धावस्था में अधिकाधिक होने लगा था। अपने पाप के विचार से दुखी राजा ने कंथडी महाराज से अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा। योगी महाराज ने कहा कि गाय और ब्राह्मणों की सच्ची सेवा करने से पापकर्म से मुक्ति मिलेगी। उनकी बात सुनकर राजा ने अपने सर्वोत्तम 14 राज सेवकों को बुलाया और उन्हें उत्तर-प्राच्य से 1000 पवित्र और विद्वान् ब्राह्मणों को ढूंढकर आदरपूर्वक लाने का भगीरथ कार्य सौंपा। ये सेवक थे-चक्रपाणी, सुरानंदी, वर्यक्ष, नंदिवर्धन, वक्रनेत्, भजानंद, नंदीश, हल, केतन, जय, जयंत, विजय, जयसेन, केतवाधीश। ये लोग अनेक रथ एवं अश्व लेकर गंगा, यमुना, प्रयाग, अयोध्या, कन्नौज, काशी इत्यादि प्रदेशों में जाकर वहां से 1037 श्रेष्ठ, ज्ञानी, कर्मकांडी विद्वान ब्राह्मणों को सपरिवार आदरपूर्वक अपने साथ गुजरात में अणहिलपुर (पाटण) लाए। श्रीस्थल प्रकाश के अनुसार उनकी संख्या निम्नलिखित थी- 

105 गंगा यमुना संगम प्रयाग के प्रदेश से , 100 व्यवन आश्रम से, 100 सरयू क्षेत्र से, 200 कान्यकुब्ज क्षेत्र से, 100 काशी से, 100 गंगद्वार हरिद्वार से, 100 नेमिशाराण्य से, 100 कुरुक्षेत्र से और 132 पुष्कर से, इस प्रकार कुल 1037 परिवार अणहिलपुर आए।  इन 1037 परिवरों में वेद के ज्ञाता इस प्रकार थे- यजुर्वेदी-999, ऋग्वेदी-17, संवेदी-17 और अथर्ववेदी-5। सिद्धपुर सम्प्रदाय के अधिकतर ब्राह्मण यजुर्वेदी, माध्यांदिनी शाखा के थे। संवेदी कौथुमी शाखा के 8 और ऋग्वेद आश्वलायनी शाखा के 7 ब्राह्मण थे। अवटंक के अनुसार ब्राह्मणों की संख्या इस प्रकार थी-

अवटंक संख्या सिद्धपुर सम्प्रदाय संख्या सीहोर सम्प्रदाय 

आचार्य      9            3 

उपाध्याय     26    11 

जानी     4           3 

जोशी     88   122 

ठाकर     21           16 

त्रिवेदी     11           5 

दवे     41          27 

पंडित(पंड्या)    66          41 

पंचोली    5          0 

मेहता  74         142 

रावल  98         101 

व्यास  58                 17 

पुरोहित  0         2 

पाठक  0        7 

दीक्षित  0        3 

कुल 31 गोत्र के औदीच्य ब्राह्मण आए थे उनमें जमदग्नि वंश के 10 गोत्र, भारद्वाज वंश के 3 गोत्र, विश्वामित्र वंश के 3 गोत्र, अत्रि वंश के 2 गोत्र, वशिष्ठ वंश के 4 गोत्र, कश्यप वंश के 3 गोत्र, अगस्त्य वंश के 2 गोत्र और गौतम वंश के 4 गोत्र शामिल थे।  ये ब्राह्मण अपने साथ अग्निहोत्र और वैदिक साहित्य शास्त्रादी लेकर आए थे। राजा तथा उसकी पटरानी माधवीदेवी ने उनका श्रद्धापूर्वक भव्य स्वागत किया और गुजरात राज्य में निवास करके राज्य में धर्म, ध्यान, उपासना, हवन, यज्ञ, वेद पठान और शास्त्राध्ययन कर गुर्जर संस्कृति का विका करने की प्रार्थना की। सभी ब्राह्मण राजा के सम्मान से संतुष्ट होकर राज्य के साधनों का उपयोग करके श्रीस्थल (सिद्धपुर) वल्लभीपुर, सीहोर, गिरनार, सोमनाथ तथा द्वारका की यात्रा के लिए प्रस्थित हुए। राजा ने प्रार्थना की कि मेरा राज्य और मैं ब्राह्मणों को दान करके वानप्रस्थ होना चाहता है, परन्तु ब्राह्मणों ने दान लेने से इनकार कर दिया। ब्राह्मणों के यात्रा पर जाने के पश्चात उनके परिवारों का अत्यंत स्नेह और ध्यानपूर्वक सम्मान होता रहे, ऐसी व्यवस्था राजा ने की। उनके जीवन व्यवहार में कोई कमी न रह जाए इसका ध्यान रखने की राजा ने अपने मंत्रियों को आज्ञा दी। राजा मूलराज की आज्ञा से ब्राह्मण परिवार की महिलाओं और बच्चों की व्यवस्था में कोई कमी न रही और सभी आनन्दपूर्वक रहने लगे। राज्य परिवार से उन्हें आदर-सत्कार, वस्त्र, आभूषण दिए गए जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार किए। 

दान स्वीकरना पसंद नहीं 

यात्रा से लौटने पर ब्राह्मणों को यह बात पसंद नहीं आई। परन्तु परिवार की स्त्रियों ने स्पष्टता की कि उन्हें जो कुछ भी दिया गया, वह उन्होंने मांगा नहीं था।  ऋषि ब्राह्मणों की स्त्रियों  ने अभी तक कठोर जीवन यापन किया था। वर्तमान आनंद एवं सुविधाओं से वे संतुष्ट थीं। उसी समय महाराज मूलराज ने राज्य दरबार में सभी ब्राह्मणों को बुलाकर उनके लिए सम्मान समारोह का आयोजन किया। इस समारोह में राज ने अपना राज्य इन 1037 ब्राह्मणों को दान में देने का प्रस्ताव रखा, किन्तु ब्राह्मणों ने इनकार कर दिया। बाद में स्त्रियों के अत्यंत आग्रह के कारण राज्य में रहकर धर्मध्यान, वेदाध्ययन कर राज्य कर राज्य संपत्ति का उपयोग में लेना स्वीकार किया। राजा ने प्रसन्नतापूर्वक सिद्धपुर, जो उस समय श्रीस्थल के नाम से प्रसिद्ध था, और जहां रुद्र महालय की स्थापना करनी थी, उसकी प्रस्तावना ब्राह्मणों के समक्ष रखी और शके 914 विक्रम संवत 1050 वैशाख अक्षय तृतीया के दिन खात मुहूर्त और एक महँ यज्ञ का कार्यारंभ हुआ। 1 हजार (सहस्त्र) औदीच्य ब्राह्मणों को विभिन्न गांव (स्वर्ण मुहरों और गायों, अश्वों सहित) दान में देने की व्यवस्था की गई, जिसमें 500 ब्राह्मणों के समुदाय को श्रीस्थल और उसके आसपास के 170 गांव देने का निश्चय किया।  इसी प्रकार शेष 500 ब्राह्मणों को सिंहपुर (सीहोर) और उसके आसपास के 89 गांव देने का निर्धारण किया।  इन सहस्त्र ब्राह्मणों ने यह दान लेना स्वीकार भी कर लिया।  शेष 37 ब्राह्मणों ने दान लेने से इनकार कर दिया।  शके 924 कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरुवार के दिन महाराज मूलराज ने ब्राह्मणों को गांव दान में दिए।  रुद्र महालय का खात मुहूर्त 1050 की वैशाख सुदी तृतीया को था।  महारुद्र यज्ञ की पूर्णाहुति 11 दिन के पश्चात हुई, परन्तु यज्ञ की दक्षिणा मात्र पुष्पांजलि से दी गई।  अतः इसके पश्चात वि.सं. 1051 की कार्तिक पूर्णिमा को ग्राम दान की विधि का समारोह हुआ होगा ऐसा संभव है।  

पवित्र सरस्वती नदी के तट पर रुद्र महालय तीर्थ में ही रुद्र महालय निर्माण करने का निश्चय करने के समय भूमि की शांति और रुद्रों के भावात्मक आह्वान के लिए उत्तर भारत से ही क्यों विद्वान बुलाए गए? क्या गुजरात में ब्राह्मण नहीं थे? इसका उत्तर रुद्र महालय नामक गुजराती ग्रंथ में मिलता है।  महान तपस्वी कंथड देव की सूचना अनुसार चारवेद और छह दर्शन के ज्ञाता शीलगुण युक्त श्रोत्रिय और प्रज्ञा सम्पनी 1100 ऋत्विजों द्वारा यह महारुद्र यज्ञ करवाना था।  महाराज मूलराज ने उपरोक्त योग्यता प्राप्त ब्राह्मणों को प्राप्त करने की सूचना मंत्रियों को दी थी।  उस समय गुजरात में मेवाड़ा, गिरनार, नागर, श्रीमाली, खेडवाल, श्रीगौड़ और द्वारका के गुगली ब्राह्मण विद्यमान थे।  अतः महाराज ने अपने निमंत्रकों को उत्तर और उत्तर प्राच्य में भेजा था।  ये निमंत्रित ऋत्विज सं. 1050 के चैत्र माह में अणहिलपुर (पाटण) आए थे।  उन्हें उस समय सर्वप्रथम सरस्वती किनारे के देथली, ब्राह्मणवाडा और श्रीस्थल के प्रदेशों में रहने बसने की प्राथमिक व्यवस्था की गई थी।

 

औदीच्य ब्राह्मणों की कुलदेवियां

सहस्त्र औदीच्य ब्राह्मणों के तीन भेद हैं सिद्धपुर, टोल्क और अन्य। जिन ब्राह्मणों को सिद्धपुर तीर्थस्थल मिला वे श्रीस्थलीय कहलाए। गोत्र के अनुसार कुलदेवियों का विवरण इस प्रकार है-

1. श्रीस्थल (सिद्धपुर) के ब्राह्मणों की कुलदेवियां

सं. अवंटक गोत्र कुलदेवी
1. दवे भार्गव आशापुरी
2. पंड्या कौशिक विघ्नेश्वरी
3. त्रवाड़ी / तिवाड़ी दाल्लभ महागौरी
4. दवे गौतम हिंगलाज
5. ठाकर पच्छस भद्रकाली
6. दवे पाराशर उमा (उमया)
7. उपाध्याय कश्यप उमा (उमया)
8. दवे भारद्वाज चामुण्डा
9. दवे शाण्डिल महालक्ष्मी
10. पण्ड्या शौनक महागौरी
11. त्रवाड़ी / तिवाड़ी वशिष्ठ शुभ्रा
12. ठाकर मौनस घारपीठ
13. जानि गर्ग अंबा
14. दवे कुच्छस उमा (उमया)
15. दवे उद्दालीक उमा (उमया)
16. दवे कृष्णात्री शुभ्रा
17. दवे कौण्डिन्य महाकाली
18. पण्ड्या माण्डव्य महागौरी
19. उपाध्याय उपमन्यु बहुस्मरा
20. दवे श्वेतात्रि उमा (उमया)
 

2. टोलक – जो औदीच्य ब्राह्मण एक टोली में रहते थे वे टोलक कहलाये –

टोलक के ब्राह्मणों की कुलदेवियां

ग्राम अवंटक गोत्र कुलदेवी
खंबात पंड्या कृष्णात्री शुभ्रा
ब्राह्मणोली पंड्या कश्यप उमा (उमया)
हरियाली पंड्या कश्यप उमा (उमया)
खेडा पंड्या कश्यप क्षेमप्रदा
सिंधुवा पंड्या वसिष्ठ वच्छ भद्रकाली, उमा
कनीज व्यास पौलस्त्य गौरी
मातर जानी शाण्डिल्य शुभ्रा
डभाण उपाध्याय भारद्वाज चामुण्डा
मरकुंड व्यास आंगिरस क्षेमकरी
महुधा व्यास कश्यप अन्नपूर्णा
ऋगुण जोशी सांकृत्य महालक्ष्मी
दरेवो कश्यप कश्यप शिवा
पुरोहित पुरोहित कश्यप गौरी
कोचरप व्यास वच्छस उमा (उमया)
 

3. अन्य कुछ ब्राह्मणों को 171 ग्राम दान में दिए –

उन ब्राह्मणों की कुलदेवियां निम्नानुसार है –
ग्राम अवंटक गोत्र कुलदेवी
1.  पशुवाल आचार्य, पंड्या, रावल गौतम शकटाम्बिका
2.  करंटा व्यास, जोशी कौशिक विघ्नेश्वरी
3.  कनोडू उपाध्याय दाल्लभ बहुस्मरा
4.  बोकड़वाला रावल गौतम नेत्रेश्वरी
5.  चन्द्रभाण व्यास गौतम गौरी
6.  मणियारी मेहता गौतम क्षेमप्रदा
7.  बडवाडु दवे भारद्वाज चामुण्डा
8.  कर्णसागर पण्ड्या, व्यास भारद्वाज उमा
9.  मणुदर रावल शांघिल क्षेमप्रदा
10.  मांडल रावल कुच्छस चामुण्डा
11.  शेदा त्रवाड़ी गौतम गौरी
12.  वीरमगाम दवे गर्ग उमा
13.  कबोई आचार्य गौतम अन्नपूर्णा
14.  कमलीवाडु रावल शौनक क्षेमप्रदा
15.  डालवाणु जोशी, पण्डित कृष्णात्री अन्नपूर्णा
16.  घंघाणु दवे, मेहता गौतम विघ्नहरी
17.  चाणससु व्यास कौण्डिन्य चामुण्डा
18.  उंझा रावल, मेहता भारद्वाज उमा
19.  अवांसणु जानी भारद्वाज अन्नपूर्णा
20.   नायकु दवे उदवाह बाहुधा
21.  यमनपुर पण्डित, रावल, जोशी पराशर, भारद्वाज चामुण्डा
22.  ब्रह्मपुरा ठाकर कौशिक प्रसन्नवदना
23.  घारियाला दवे भार्गव क्षेमप्रदा
24.  डेडाणु जोशी, मेहता भार्गव, भारद्वाज दुर्गा
25.  पंचकबाहु पण्डित, दवे, जोशी कौण्डिन्य, पाराशर, अत्री क्षेमप्रदा
26.  लोटपुर तरवाड़ी काश्यप उमा
27.  खंभाली व्यास, जोशी कौशिक, पाराशर क्षेमप्रदा
28.  विचणियु त्रवाणो, जोशी गर्ग
29.  वडासण रावल उद्दालक गौरी
30.  चन्द्रासण उपाध्याय कश्यप अन्नपूर्णा
31.  वनासन उपाध्याय, व्यास पराशर, भारद्वाज अन्नपूर्णा
32.  वरखीलु पण्डित, जोशी कौशिक, भारद्वाज गौरी, चामुण्डा
33.  जगाणा रावल वत्सस महागौरी
34.  गुजरवाड दवे कुत्सस महीपानकरी
35.  तावड़िया पंडित वसिष्ठ धारदेवी
36.  बजाणा व्यास भारद्वाज उमा
37.  झिंझुवाड़ा व्यास भारद्वाज महागौरी
38.  खोलवाडु व्यास भारद्वाज महागौरी
39.  मानमोर पंचोली गर्ग गौरी
40.  जंघराल जोशी आत्रेय बहुधा
41.  सेहाबी मेहता महागौरी
42.  कल्याणु आचार्य कौशिक कल्याणी
43.  बडावली रावल भारद्वाज  उमा
44.  पिप्पलाण पंडित गौतम  विश्वमाता
45.  भीलोडु व्यास कश्यप सिद्धेश्वरी
46.  कीर्तरा दवे, व्यास शाण्डिल्य कर्तेश्वरी
47.  कालरी पण्डित गौतम कर्तेश्वरी
48.  देवली दवे पाराशर उमा
49.  तंबोल्यु व्यास बच्छस उमा
50.  बिसरोड पंडित कश्यप गौरी
51.  बोधणु पंडित कश्यप दुर्गा
52.  धणोहर उपाध्याय कश्यप नेत्रांबिका
53.  खाबड़ी रावल, पंडित पाराशर सर्वसिद्धिदा
54.  भूखली ठाकर गौतम गौरी
55.  बिरता उपाध्याय पिप्पलादे सर्वसिद्धिदा
56.  सोणका पंडित बच्छस सर्वसम्पत्तिकरी
57.  दहियोदर व्यास मेहेता सर्वसिद्धिकरी
58.  मठ जोशी माण्डव्य गौरी
59.  मलाणा दवे, मेहता गौतम हिंगलाज
60.  मोडी जोशी सांकृत्य वहुधा
61.  मुंडाणू जोशी, दवे भारद्वाज गौरी
62.  रुपाल व्यास, आचार्य गौतम सुधा
63.  सुबाला त्रवाड़ी हिरण्यगर्भ सप्तश्रृंगी
64.  अघार व्यास, जोशी गौतम शुभ्रा
65.  गलपरु मेहता, पंडित कश्यप सर्वसिद्धि
66.  नानोषण दवे, व्यास गौतम उमा
67.  पुंधरा मेहता, व्यास वशिष्ठ नेत्रेश्वरी
68.  भर्कावाडू उपाध्याय भारद्वाज त्रिपुरा
69.  बोरीसाणु उपाध्याय वशिष्ठ त्रिपुरांतका
70.  जामला उपाध्याय गौतम त्रिपुरा
71.  विठलपुरा उपाध्याय वशिष्ठ दुर्गा
72.  अक्षाणा त्रवाड़ी, दवे कौडिन्य पुष्पमाला
73.  लोहर दवे, मेहता भारद्वाज तप्तेश्वरी
74.  भातसीणी उपाध्याय भारद्वाज सिद्धेश्वरी
75.   नागरासण पण्डित गौतम शुभ्रा
76.   उदेला मेहता भारद्वाज नागेश्वरी
77.  हीरवाणी मेहेता, जोशी वसिष्ठ सर्वसम्पत्तिकरी
78.   तलासर व्यास, जोशी भारद्वाज सर्वसिद्धिकरी
79.   गोवनु जोशी कश्यप क्षेमप्रदा
80.  अडालज व्यास पाराशर उमा
81.  आद्रिआणु पंडित चंद्रात्री वटेश्वरी
82.  कालाडा जोशी, पंडित भार्गव त्रिपुरा
83.  वसलाणु पंडित गौतम नेत्रेश्वरी
84.  परवाडु मेहता बच्छस त्रिपुरा
85.  कोट रावल शाण्डिल्य गौरी
86.  मातरवाडु दवे, जोशी शाण्डिल्य माहेश्वरी
87. वाघ्रोल्प उपाध्याय, जोशी पाराशर अन्नपूर्णा
88.  अडपोद्रा आचार्य, जोशी भारद्वाज दुर्गा
89.  तीहोज रावल, जोशी भारद्वाज तृप्तेश्वरी
90.  कुंवरपुर ठाकर, जोशी भारद्वाज उमा
91.  सीमाण रावल भारद्वाज अन्नपूर्णा
92.  दातकोड़ी जोशी भारद्वाज क्षेमप्रदा
93.  छत्राल व्यास गौतम महोदरी
94.  कुकुआवी ठाकर कश्यप त्रिपुरा
95.  उलोत्रु दवे गौतम त्रिपुरा
96.  उकरवाडा ठाकर भारद्वाज त्रिपुरा
97.  पीपली जोशी पाराशर महागौरी
98.   वसाई रावल बच्छस तत्राम्बिका
99.   कर्णपुर उपाध्याय, ठाकर कौशिक महेश्वरी
100.  वावोल्प रावल, मेहता भारद्वाज महाविद्या
101.  बावली मेहता शांडिल्य गौरी
102.  छमीछु रावल, मेहता भारद्वाज कवेश्वरी
103.  सहोर दवे, ठाकर बच्छस तत्राम्बिका
104.  वलादि पंडित, जोशी शांडिल्य गौरी
105.  वर्णसमू पंडित भारद्वाज वहिश्वरी
106.  अगस्तिया दवे वसिष्ठ वहिश्वरी
107.  बावड़ी जोशी, रावल भारद्वाज तत्रांबिका
108.  शपावाडु मेहता भारद्वाज उमा
109.  कामली रावल भारद्वाज क्षेमप्रदा
110.  सनलपुर पंडित भारद्वाज दुर्गा
111.  महावड़ा पंडित भारद्वाज दुर्गा
112.  उबरी रावल, जोशी भारद्वाज शाकम्भरी
113.  सोभाषण मेहता शांडिल्य अंबा
114.  जवरी व्यास, पंडित बच्छस गौरी
115.  गोरतोवी व्यास भारद्वाज पुष्पा
116.  सोजु पंडित गर्ग त्रिपुरान्तक
117.  जालीसा व्यास, जोशी भारद्वाज तत्रांबिका
118.  त्रहेटा पंडित, जोशी भारद्वाज अन्नपूर्णा
119.  खेरपुर मेहेता, जोशी भारद्वाज नन्देश्वरी
120.  सरसाव व्यास, जोशी भारद्वाज दुर्गा
121.  बिछणी व्यास भारद्वाज दुर्गा )
122.  बटवा रावल भारद्वाज तप्तेश्वरी
123.  गांभु मेहेता कश्यप तत्रांबिका
124.  रंगपूर व्यास गर्ग गौरी
125.  जलपूर मेहेता कश्यप क्षेमप्रदा
126.  देलोल व्यास बच्छस बहीश्वरी
127.  वाडही पंडित, मेहेता भारद्वाज उमा
128.  लोलादु रावल कश्यप दुर्गा
129.  वाराही मेहेता, जोशी पाराशर विश्वेश्वरी
130.  सादर उपाध्याय, राजगुर भारद्वाज शिवा
131.  बड़गाँव पंडित, मेहता उपमन्यु, कौशिक तत्रांबिका
132.  शेवाला मेहेता कौशिक गौरी
133.  मशाल रावल भारद्वाज गौरी
134.  उपेरा रावल, मेहता भारद्वाज पुष्पमाला
135.  धारावाडु ठाकर, रावल भारद्वाज तप्तेश्वरी
136.  मगरवाडु ठाकर भारद्वाज अन्नपूर्णा
137.  घोड़िअल व्यास भारद्वाज विश्वरूपा
138.  रिवाड़ी पंडित, मेहता भारद्वाज बहुधा
139.  उभदा ठाकर, मेहता भारद्वाज उमा
140.  नौरता पंडित भारद्वाज नदी
141.  धीप्रोदा पंडित, रावल भारद्वाज चामुण्डा
शेष ब्राह्मण गुजरात के गांव छोड़कर मारवाड़ जा बसे।  उनकी कुलदेवियों का वर्णन नहीं हुआ है। अन्य 2 – कुछ ब्राह्मणों को सीहोर क्षेत्र में 81 गांव मिले। वे निम्नलिखित हैं –
ग्राम अवंटक गोत्र कुलदेवी
1. सीहोर दवे, जानी, जोशी कृष्णात्री, सांकृत्य, भारद्वाज अन्नपूर्णा
    बटवाणा पंड्या, दवे, जोशी गौतम दुर्गा
2.  गुन्दी पंड्या, मेहता वसिष्ठ महाकाली
3.  वाटही व्यास उपमन्यु हिंगलाज
4.  गोहिलवाडु पंडित, मेहता वसिष्ठ उमा
5.  पिंपराली आचार्य, पाठक गौतम, भारद्वाज गौरी
6.  भिमलाणा पंडित वसिष्ठ महागौरी
7.  देगमाणु आचार्य गामायन महागौरी
8.  बलमीपुर त्रवाड़ी, व्यास कुच्छस, चन्दात्री महागौरी
9.  कानड़ा ठाकर पराशर भद्रकाली
10.  धावली पंडित, मेहेता भारद्वाज, कौशिक भद्रकाली
11.  पाटण पंडित, उपाध्याय वसिष्ठ मांडव्य महेश्वरी
12.  सोनपुर ठाकर गर्ग गौरी
13.  मलाणा दवे, जोशी, उपाध्याय भारद्वाज शाकम्भरी
14.  वरेली मेहेता, जोशी शौनक, मांडव्य उमा
15.  रामाठरी पंडित गौतम मालेश्वरी
16.   फरादरा रावल, पंड्या भार्गव गौरी
17.   सेवडद्रा पंड्या, मेहेता बच्छस शाकम्भरी
18.  हाथशीण पंड्या, उपाध्याय पराशर शाकम्भरी
19.   बगस्थल दवे कौशिक दुर्गा
20.   बलावड पंडित गौतम अन्नपूर्णा
21.   घोरपुर पंड्या, मेहेता शांडिल्य तप्तेश्वरी
22.   शामली जोशी, मेहेता, ठाकर गर्ग, भारद्वाज उमा
23.  बारसिंग व्यास, उपाध्याय भारद्वाज, कश्यप चामुण्डा
24.  मालवाडु दवे चन्द्रात्री उमा
25.  चण्डीसर उपाध्याय, पुरोहित कश्यप दुर्गा
26.  गमीदा मेहेता वच्छस उमा
27.  झापोदर दवे, जोशी भार्गव विश्वेश्वरी
28.  देलवाडु पाठक गौतम सिद्धेश्वरी
29.  शाउली व्यास भारद्वाज आषंगपुरी
30.  शाणवा मेहेता गर्ग सिद्धेश्वरी
31.  लडुवा मेहेता, दवे कौण्डिन्य क्षेमकरा
32.  नगर त्रवाडी गोभिल अन्नपूर्णा
33.  वैजुलका मेहेता, दवे, पंडित वसिष्ठ महालक्ष्मी
34.  घुघराली ठाकर बच्छस शुभ्रा
35.  पंचोली पाठक, जोशी कश्यप सिद्धेश्वरी
36.  उखबाडु मेहेता, दवे लौगाक्षी महागौरी
37.  घारकु पंडित शांडिल्य
38.  शेलाणु पंडित, मेहेता पाराशर विघ्नहरी
39.  कटलाणा रायल, जोशी गौतम गौरी
40.  गुंडलु मेहेता, त्रवाड़ी वच्छस अम्बा
41.  दानवारु मेहेता गौतम सिद्धेश्वरी
42.  सर्पहि व्यास वसिष्ठ उमा
43.  उवरावली मेहेता, जोशी भारद्वाज  क्षेमप्रदा
44.  जांबुया पाठक, मेहेता भारद्वाज  गौरी
45.  साणंद पंडित, मेहेता वसिष्ठ लक्ष्मी
46.  मगोडी मेहेता भारद्वाज सिद्धेश्वरी
47.  नीघवा रावल, पुरोहित कश्यप सर्वसम्पत्तिकरी
48.  बढो पंडित, जोशी भारद्वाज क्षेमप्रदा
49.  बोदाली व्यास, मेहेता कश्यप उमा
50.  वछकपुर रावल भारद्वाज सर्वसिद्धिकरी
51.  अदालय ठाकर, पंडित भारद्वाज सर्वसिद्धिकरी
52.  सारधारू जोशी, रावल भारद्वाज सर्वसम्पत्तिकरी
53.  सीहोदर रावल भार्गव उमा
54.  ठीठमी उपाध्याय गर्ग महीपानकरी
55.  वाकघा जोशी, मेहेता शांडिल्य उमा
56.  ककावी दीक्षित पाराशर गौरी
57.  असराड़ पंडित, जोशी शांडिल्य क्षेमप्रदा
58.  कोठड़ी दवे, मेहेता कश्यप शिवा
59.  पणसोरु दीक्षित, दवे भारद्वाज चामुण्डा
60.  देवगाम ठाकर कश्यप उमा
61. ब्रह्मपागाम पण्डित कश्यप शुभ्रा
62.  टकवा ठाकर कश्यप शुभ्रा
63.  त्रवाड़ी व्यास पाराशर तप्तेश्वरी
64.  असलाली पंड्या, जोशी भारद्वाज शुभ्रा
65.  खोखडू रावल, मेहता पाराशर उमा
66.  भालज व्यास भारद्वाज महालक्ष्मी
67.  पाठकाला पण्डित शाण्डिल्य महालक्ष्मी
68.  अंतरपुर मेहेता भारद्वाज महालक्ष्मी
69.  ऊटड़ी मेहेता भारद्वाज त्रसेश्वरी
70.  रगड़ी मेहेता, जोशी भारद्वाज अम्बा
71.  लिगरी जोशी भारद्वाज सिद्धेश्वरी
72.   रेवनपुर जोशी पाराशर सिद्धेश्वरी
73.   सोनरल पंड्या कश्यप उमा
74.  पाकला दवे भारद्वाज सिद्धेश्वरी
75.   कुकडु मेहेता भारद्वाज विघ्नहरी
76.   सिंहपूर रावल भारद्वाज क्षेमप्रदा
77.  उपलोट जोशी भारद्वाज उमा
78.   देहेगाम मेहेता भारद्वाज विघ्नहरी
79.   जिहवा जोशी भारद्वाज उमा
80.  टिटोड़ी रावल, जोशी भारद्वाज उमा
81.  घाड़सरी जोशी, रावल भारद्वाज उमा