
आस्था शर्मा,
इंदौर (मध्य प्रदेश)
वसंतोत्सव, मां वाग्देवी के प्रादुर्भाव का दिवस है, साथ ही मां को अंतःकरण में धारण करने का उत्सव है। वैसे भी, पर्व सनातनी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, जो हमारी जीवन शैली को शिक्षात्मक और उत्सव धर्मी बनाते हैं। सनातनी पर्व, प्रकृति आधारित हैं, जो ये सिद्ध करते हैं कि हमारे पूर्वजों को प्रकृत्ति और अखिल ब्रम्हांड की पूरी समझ थी। कालांतर में सनातनी पर्वों को विज्ञान की कसौटी पर कई कई बार परखा गया। हर बार विज्ञानी और अन्वेषक, हमारे संस्कृतिक ग्रंथों से अचंभित होते रहे, आज भी हो रहे हैं। यही ग्रंथ हमारी प्राचीन शिक्षा व्यवस्था के आधार हैं, इन्हें समाज में पुनर्स्थापित करना अनिवार्य है, यही व्यवस्था हमें हमारा पुराना गौरव लौटा सकती है। उदाहरणार्थ संस्कृत भाषा कंप्यूटर के लिए सबसे सटीक और सुरक्षित मानी गई है। इसी प्रक्रम में सनातनी वैदिक गणित, वर्तमान में जिज्ञासाओं के शमन का साधन माना जाता है।
दिव्य दैवीय शक्ति का सारस्वत स्वरूप ही सरस्वती है, जो समग्र जगत में विद्या की देवी के रूप में पूज्य है। दैवीय शक्तियों को अपनी अंत:र्मन की भावनाओं के अनुरूप मानवीय आकृति में चित्रण करना, भक्तियोग की अभिव्यक्ति की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति है। अपने आराध्य दैवीय शक्ति को सर्वकालिक, सर्वस्वीकृति के योग्य चित्रण रूप ही आस्था का पर्याय है।
शिक्षा से ज्ञान प्राप्ति की ओर अग्रसर होना ही, मानवीय विकास का प्रथम चरण है, जो ज्ञान की अनंत यात्रा का पथिक बनाता है। ज्ञानार्जन हमें चैतन्य बनाता है, यही चैतन्यता हमारे लिए, अविवेक से विवेक का मार्ग प्रशस्त करती है। कई मनीषी विवेक को प्रकृत्ति दत्त बौद्धिक क्षमता, अर्जित ज्ञान और देशकाल परिस्थिति का संतुलित मिश्रण बताते हैं, अर्थात् विवेकशील व्यक्ति होने के लिए बुद्धि और ज्ञान का निरंतर विकास होना चाहिए। विवेकशील व्यक्ति ही समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर प्रसन्न रहता है।
मां वाग्देवी की मानवीय आकृति में उनके हाथ में पुस्तक, अखिल विश्व में विद्या की अधिक से अधिक अभिवृद्धि की द्योतक है, जिससे ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो, मानवीय विवेक शाश्वत हो। साथ ही, ‘पुस्तक’ मानव के आध्यात्मिक तथा भौतिक विकास की प्रेरणा देती है। मां के हाथों में वाद्य यंत्र वीणा, निरंतर ‘सरस्वती राग’ की मृदुल कोमल स्वर लहरी की तरंगों से मानवीय मन, मस्तिष्क और हृदय को विद्या की महत्ता हेतु सदैव ही झंकृत करती रहती है।
मां वाग्देवी को अपने अंतःकरण में विराजित करने के लिए, अंतःकरण में ज्ञान पिपासा का अखंड दीप प्रज्वलित करना होगा। भारतवर्ष को पुनः जगद्गुरु बनाने के लिए, जन-जन तक शिक्षा उपलब्ध कराने के भागीरथी प्रयास करना होंगे, “एक राष्ट्र, एक विधान, एक निशान, एक शिक्षण” लागू करना होगा, यही मां वाग्देवी की सच्ची आराधना होगी। हे मां वाग्देवी, हमें, अंब विमल मति दे, ताकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा हमारे राष्ट्र और सामाजिक जीवन को सत्य व तथ्यपरक बनाए, निर्भय करे, आतंक मुक्त करे।