संपादकीय

मई 2023

परिवार ही हम सभी के जीवन का सबसे बड़ा आधार होता है। परिवार में हमारे माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन का प्रेम ही हमें जीवन में हर मुश्किल से लड़ने की ताकत देता है। हर रिश्ते का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व होता है। फिर चाहे अमीर हों या गरीब परिवार, सभी के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका परिवार ही निभाता है। परिवार के साथ हमें बड़ों की छांव मिलती है, प्रेम , परवरिश, देखभाल, परंपरा से जुड़ाव के साथ-साथ अकेलेपन से दूर रखने में अहम भूमिका भी परिवार ही निभाता है। यदि संक्षेप में कहा जाए तो परिवार जीवन का सबसे बड़ा आधार होता है। माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन का प्रेम हमें जीवन में हर मुश्किल से लड़ने की शक्ति देता है। चाहे अमीर हो या गरीब, परिवार का जुड़ाव सभी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार की उपयोगिता-आवश्यकता को प्रचार-प्रसार के साथ स्वीकार्य बनाने के उद्देश्य से ही 15 मई को प्रतिवर्ष ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस’ मनाया जाता है।

वस्‍तुत: परिवार ही है जो हमें समाज के तौर-तरीके सिखाता है। परिवार किसी भी इंसान के लिए उसकी रीढ़ की हड्डी की तरह होता है, जो हर अच्छे बुरे वक्त में उसके साथ खड़ा होता है। किसी भी व्यक्ति का विकास उसके परिवार से ही होता है। परिवार के बीच रहकर ही वह अच्छे बुरे आचरण में फर्क करने एवं अपने भविष्य को अच्छा बनाने के लिए प्रेरित होता है। परिवार में एकजुटता की पहली सीढ़ी है कि हम स्वार्थी होने की बजाए दूसरे के बारे में सोचें, स्पष्ट है खुद से पहले परिवार के सदस्यों के बारे में सोचें। कहा भी जाता है कि परिवार एक ऐसी सामाजिक संस्था है, जो केवल सम्मान, सहयोग व समन्वय से ही अस्तित्व में आती है। एक ऐसी छोटी इकाई, जहां स्नेह एवं पूर्ण समर्पण के साथ जीवन निर्वाह को व्यवहार में संभव भी किया जाता है। संस्कार और अनुशासन का पालन यदि किसी भी सुखी-संपन्न एवं प्रगतिशील परिवार के गुण होते हैं, तो परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए भी इन्हीं गुणों की आवश्यकता सदैव अनुभव की जाती है।

भारतीय परंपरा में संयुक्त परिवार की उपयोगिता को महत्व देखते हुए देश, काल और परिस्थिति के अनुसार सकारात्मक दृष्टिकोण से ही उसकी व्याख्या की जाती रही है। संयुक्त परिवार में वरिष्ठजनों के अनुभव व ज्ञान से अबोध से युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन का लाभ मिलता है। संयुक्त पूंजी, संयुक्त निवास व संयुक्त उत्तरदायित्व के कारण परिवार में अनुशासन व परस्पर सहयोग और समर्थन जैसे अनिवार्य गुणों की उपस्थिति हमेशा बनी रहती है। इसीलिए, कहा जाता है कि परिवार मर्यादाओं से बनता है। परस्पर कर्त्तव्य होते हैं, अनुशासन होता है और उस नियत परंपरा में कुछ सदस्‍यों की एकल जिम्मेदारी ही सामूहिक दायित्व में परिलक्षित होती है। क्योंकि, परिवार ही है जो हमें समाज के तौर-तरीके सिखाता है। परिवार किसी भी इंसान के लिए उसकी रीढ़ की हड्डी की तरह होता है, जो हर अच्छे बुरे वक्त में उसके साथ खड़ा होता है।  

हमारी संस्कृति और सभ्यता कितने ही परिवर्तनों को स्वीकार करके अपने को परिष्कृत कर ले, लेकिन परिवार संस्था के अस्तित्व पर कोई भी आंच नहीं आई। वह बने और बन कर भले टूटे हों लेकिन उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता है। आज आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि परिवार की शक्ति को पहचानें और नई पीढ़ी को संस्कारों के साथ परिवार के महत्व से भी परिचित करवाएं।