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नैनो यूरिया और डीएपी से फसलों को अधिक पोषक तत्व
दुनिया की सबसे बड़ी सहकारी कंपनी इफको (इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव लिमिटेड) के एमडी डॉ. यूएस अवस्थी ने नैनो यूरिया और डीएपी के फायदों को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया प्लस में केवल नाइट्रोजन ही नहीं, बल्कि सल्फर, मैग्नीशियम, बोरॉन, मैंगनीज और एमिनो एसिड भी शामिल होने से यह सामान्य यूरिया की तुलना में खेती के लिए अधिक प्रभावी है। सामान्य डीएपी और यूरिया पौधों को 20 और 30 प्रतिशत तक पोषक तत्व प्रदान कर पाते हैं जबकि नैनो यूरिया और डीएपी की एफिशिएंसी सामान्य यूरिया-डीएपी से 95 प्रतिशत अधिक है।
डॉ.अवस्थी के अनुसार नैनो डीएपी और यूरिया के उपयोग से पौधों की जड़ों की गहराई बढ़ती है, जिससे पौधे तेज बारिश और हवा के कारण गिरने से बचते हैं और फसलों की गुणवत्ता में सुधार होता है। इससे फसलों का दाना मोटा होता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है और किसानों को अधिक लाभ होता है। इफको जल्द ही एक कॉल सेंटर स्थापित करने जा रही है, जो किसानों के सवालों का जवाब देने के लिए विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध होगा। आपने बताया कि नैनो फर्टिलाइजर की टेक्नोलॉजी राष्ट्रीय केमिकल एंड फर्टिलाइजर लिमिटेड, नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड और गुजरात में निजी क्षेत्र की एक कम्पनी भेजी गई है। इफको हर साल करीब 300 करोड़ रुपए नैनो यूरिया और डीएपी को बढ़ावा देने पर खर्च कर रही है। नैनो फर्टिलाइजर के बेसल डोज पर रिसर्च जारी है। नैनो यूरिया और डीएपी का वैश्विक बाजार में भी विस्तार हो रहा है। अब तक 500 एमएल वाली नैनो यूरिया की 8400 बोतल अमेरिका और 5000 बोतल जाम्बिया को निर्यात की जा चुकी हैं। इफको के पास सालाना 17 करोड़ बोतल नैनो यूरिया और 6 करोड़ बोतल डीएपी बनाने की क्षमता है, लेकिन वर्तमान में इसका केवल 15 प्रतिशत ही उपयोग हो पा रहा है। ड्रोन के जरिए नैनो फर्टिलाइजर का छिड़काव 2.4 लाख एकड़ में किया जा चुका है, और इसका लक्ष्य अब 1 करोड़ एकड़ किया गया है। जल्द ही माइक्रो न्यूट्रिएंट्स भी नैनो रूप में उपलब्ध होंगे।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना
देश के किसानों को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का संचालन किया जा रहा है। सरकार उन सभी पात्र किसानों को भी योजना से जोड़ने जा रही है, जो अब तक इससे जुड़े नहीं हैं। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में बताया कि पीएम किसान सम्मान निधि के अंतर्गत सभी पात्र किसानों को 6000 रुपए का सालाना लाभ प्रदान किया जाता है। पात्र किसानों को पीएम किसान योजना से जोड़ने के लिए सरकार अभियान चला रही है, तीन अभियान हो चुके हैं, चौथे अभियान की शुरुआत 15 अप्रैल से की जाएगी। देश के किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ मिल सके, इसके लिए सरकार कई प्रयास कर रही है। किसानों की सहायता के लिए मोबाइल एप और पीएम किसान पोर्टल भी लॉन्च किए जा चुके हैं। पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार किसानों को सालाना 6000 रुपए का लाभ देती है। यह राशि सीधे किसानों के बैंक खातों में 2000-2000 रुपए की तीन समान किस्तों में जारी की जाती है। योजना के लाभ की राशि किसानों के खातों में डीबीटी के माध्यम से ट्रांसफर की जाती है।
भरपूर कमाई देने वाला नीबू
नीबू के फायदों के बारे में आपने सुना होगा। इसमें विटामिन सी की अधिकता के कारण डॉक्टर भी इसे सेवन की सलाह देते हैं। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण नीबू की खपत में भी तेजी आई है। गर्मियों में तो इनके दाम आसमान पर भी पहुंच जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं इसकी खेती से कई किसान हर महीने अच्छी-खासी कमाई कर रहे हैं। कागजी नीबू
नीबू की कागजी वेरायटी आजकल बहुत ज्यादा प्रचलित है। इसका एक पौधा करीब 200 रुपए में मिलता है। एक पौधा 12 साल तक लगातार फल देता है। इतना ही नहीं नीबू की इस किस्म में फल सामान्य से भी ज्यादा होते हैं। एक पौधे से ही 3000 से 5000 फलों का उत्पादन हो जाता है।
किसान लगा रहे बगीचे
कई किसानों ने अपने खेतों में कागजी नीबू के 200-300 पौधे लगाए हैं। शुरुआत में तो इसमें पैदावार कम होती है, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ जाती है। बाद में किसान हर महीने डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा का मुनाफ़ा नीबू की खेती के माध्यम से कमा सकते हैं।
सामान्य देखरेख
नीबू की इस खास किस्म के पौधों की रोपाई के बाद सामान्य देख-रेख की आवश्यकता होती है। अच्छी देखभाल के बाद पदावर भी अच्छा हो सकती है। किसान एक साल में तीन बार तक फसल निकालते हैं। इनमें एक बार में 15 हजार से 20 हजार नग नीबू आराम से निकल जाते हैं। होलसेल मार्केट में एक नग नीबू कम से कम2-3 रुपये में बिकता है।
कीट और रोग पर दें ध्यान
नीबू की फसल में कई तरह के कीटों और रोगों के होने की आशंका रहती है, जिनकी समय पर पहचान करनी जरूरी है। इसका निवारण नहीं करने पर किसानों को आर्थिक नुकसान भी हो सकता है। कागजी नीबू में नीबू तितली, लीफ माइनर, सिट्रससिल्ला और सिट्रस कैंकर जैसे रोग होते हैं, जिनसे कीट नाशक का उपयोग करके बचाया जा सकता है।
पर्पल पत्ता गोभी
देश में अधिकतर किसान गेहूं, धान, गन्ना जैसी फसलों पर पसीना बहाते हैं, लेकिन उन्हें मेहनत के अनुसार परिणाम नहीं मिलता। इसके विपरीत कई किसान पारम्परिक खेती की जगह आधुनिक खेती में भी हाथ आजमा रहे हैं और उन्हें कमाई भी अच्छी-खासी हो रही है। सहारनपुर के मेरवानी में रहने वाले किसान आदित्य त्यागी वन विभाग से सेवानिवृत्त हैं। उनका खेती के प्रति विशेष लगाव है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक किसान ऑर्गनिक विधि से एक विदेशी सब्जी की खेती कर रहे हैं। वे विदेश यात्रा पर जाते हैं तो अलग तरीके से खेती करने की विधि सीख कर आते हैं। जब वे योरप गए तो उन्होंने ऑर्गेनिक विधि से वहां उगने वाली पर्पल गोभी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की। यह नया आइडिया वे
भारत लेकर लौटे । अपने गांव पहुंच कर उन्होंने इस विदेशी सब्जी की खेती की शुरुआत की।
इसके साथ ही वे अन्य सब्जियां भी उगा रहे हैं। वे बताते हैं कि सरकार भी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है ताकि किसानों की आय बढे। देश में तैयार होने वाली पत्ता गोभी की कीमत से लगभग चार गुना कीमत पर जामुनी बंद गोभी मिलती है। इसके गुणों के कारण इनकी मांग भी ज्यादा है। आजकल कई लोग विदेशी सब्जी और फलों को पसंद कर रहे हैं। उन्होंने किसानों से कहा है कि परम्परागत खेती के साथ ही आधुनिक खेती में भी हाथ आजमा कर देखें, आपको निराशा नहीं होगी।
भारतीय रसोईघरों में फिर लौटेंगे मोटे अनाज
-हरित क्रांति के बाद थाली से गायब हो गए थे
-सेवन से लोग स्वस्थ्य और तंदुरुस्त रहते हैं
-प्रधानमंत्री ने भी मन की बात में जिक्र किया
केंद्र सरकार का मानना है कि मोटे अनाज में काफी पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसका सेवन करने से लोग स्वस्थ्य और तंदुरुस्त रहते हैं। वैसे भी हमारे पूर्वज पहले मोटा अनाज ही खाते थे, लेकिन हरित क्रांति आने के बाद थाली से मोटे अनाज के व्यंजन गायब होते चले गए और उसकी जगह गेहूं ने ले ली। हालांकि, सरकार द्वारा जागरूकता फैलाने के बाद देश के किसान फिर से मोटे अनाज की तरफ रूख कर रहे हैं। किसान अब पहले के मुकाबले अधिक रकबे में मक्का, बाजरा और अन्य दूसरे मोटे अनाजों की खेती करने लगे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों मन की बात में मोटे अनाज का भी जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि भारत के प्रयास से 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष के रूप में मनाया गया। इससे इस क्षेत्र में काम करने वाले स्टार्टअप को बहुत से अवसर मिले हैं। वहीं, किसान भी धीरे-धीरे मोटे अनाज की तरफ रूख कर रहे हैं। वे फिर से बाजरा और मक्का जैसी फसलों की खेती करने लगे हैं। इससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स या मोटा अनाज वर्ष घोषित किया। इस साल केंद्र सरकार ने मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए। कई राज्यों में मोटे अनाज की खेती करने पर किसानों को बंपर सब्सिडी भी दी जा रही है। यहां तक कि पिछले साल 20 दिसंबर को कृषि मंत्रालय की तरफ से संसद भवन में मोटे अनाज का भोज आयोजित किया गया था। इंटरनेशन इयर ऑफ मिलेट्स के अवसर पर आयोजित इस भोज को विशेष बनाने के लिए कृषि मंत्रालय की तरफ से विशेष तैयारियां की गई थीं। इस भोज में राजस्थान और कर्नाटक के विशेष सेफ (खानसामे) बुलाए गए थे। वहीं इस भोज के लिए राष्ट्रपति द्रोप्रदी मुर्मू और पीएम नरेंद्र मोदी समेत दोनों सदनों को आमंत्रित किया गया था।
इसलिए जरूरी
दरअसल, आज से 50-60 साल पहले पूरा देश मोटा अनाज ही खाता था, लेकिन हरित क्रांति आने के बाद किसान गेहूं की खेती करने लगे। धीरे-धीरे मोटे अनाज का मार्केट सिकुड़ता गया और लोगों के रसोईघर से ज्वार और बाजरे की रोटी गायब होती चली गई। फिर मोटे अनाज को गरीबों का भोजन कह दिया गया। मोटे अनाज का सेवन करने वाले लोगों को पिछड़ा समझा जाने लगा। ऐसे में मार्केट सिकुड़ने और उचित कीमत नहीं मिलने से किसानों ने भी मोटे अनाज की खेती छोड़ दी। लेकिन 50 साल बाद सरकार फिर से किसानों को मोटे अनाज की खेती करने के लिए जागरूक कर रही है, क्योंकि गेहूं और धान जैसी फसल की खेती में सिंचाई के लिए पानी की बहुत जरूरत पड़ती है। इससे भूजल स्तर तेजी के साथ गिरता जा रहा है। वहीं, खाद के ऊपर भी अधिक खर्च होता है। ऐसे में सरकार ने फिर से मोटे अनाज को बढ़ावा देने का मन बना लिया। क्योंकि मोटे अनाज को बहुत ही कम सिंचाई और कीटनाशकों की जरूरत पड़ती है। साथ ही इसकी खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ जाती है।
ये हैं मोटे अनाज
सांवा, कोदो, रागी, कुट्टु, काकुन, ज्वार, बाजरा और चीना को मोटा अनाज कहा जाता है अनाज कहा जाता है।
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कृषि विज्ञानिकों ने गेहूं की तीन नई किस्में विकसित की
-उत्पादन मिलेगा अधिक
-रोग प्रतिरोधी क्षमता भी
जिस तरह साल दर साल तापमान बढ़ रहा है, इससे गेहूं के उत्पादन पर भी असर पड़ रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक ऐसी किस्मों को विकसित करने में जुटे हैं, जिनसे बेहतर उत्पादन भी मिलने के साथ तापमान का भी असर न हो। भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा (आईसीएआर) ने ऐसी ही तीन नई बायो फोर्टिफाइड किस्में- डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही), डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा), डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा) विकसित की हैं। इनका उत्पादन पहले की किस्मों से कहीं ज्यादा है।
उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र देश के सबसे उपजाऊ और गेहूं के सर्वाधिक उत्पादन वाले क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में गेहूं के मुख्य उत्पादक राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर संभा छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला और पोंटा घाटी शामिल हैं।
नई किस्मों की विशेषता
डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही), डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा), डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा) किस्में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के सिंचित दशा में अगेती बोवनी के लिए विकसित की गई हैं।
डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा): डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा) सिंचित क्षेत्रों में अगेती बुवाई के लिए विकसित की गई है। इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर संभाग छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झांसी मंडल छोड़कर), जम्मू कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला, पोंटा घाटी और उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में की जा सकती है। इसकी उत्पादन क्षमता 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 75.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊंचाई 100 सेमी, पकने की अवधि 150 दिन और 1000 दानों का भार 46 ग्राम है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12.2 प्रतिशत, जिंक 39.9 पीपीएम और लौह तत्व 44.9 पीपीएम होता है।
डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही): इसी तरह डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही) उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पौधों की ऊंचाई 99 सेमी, पकने की अवधि 151 दिन और 1000 दानों का भार 41 ग्राम है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12 प्रतिशत, जिंक 37.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.9 पीपीएम होता है।
डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा): डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा) की उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। पौधों की ऊंचाई 96 सेमी, पकने की अवधि 151 दिन और 1000 दानों का भार 42 ग्राम है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12.2 प्रतिशत, जिंक 40.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.7 पीपीएम होता है।इस किस्म के पौधे 96 सेमी के होते हैं, जिससे इनके पौधे तेज हवा चलने पर भी नहीं गिरते हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता
कई रोगों की प्रतिरोधी इन तीनों किस्में पीला और भूरा रतुआ की सभी रोगजनक प्रकारों के लिए प्रतिरोधक पाई गई हैं। जबकि डीबीडब्ल्यू 370 और डीबीडब्ल्यू 372 करनाल बंट रोग प्रति अधिक प्रतिरोधक पाई गई हैं।
तीनों किस्में बायो फोर्टिफाइड
आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार शर्मा गेहूं की इन किस्मों की विशेताओं के बारे में बताते हुए कहते हैं- “जिस तरह तापमान बढ़ रहा है, हम हीट प्रतिरोधी किस्में विकसित कर रहे हैं, जिससे गेहूं उत्पादन पर असर न पड़े। ताजा विकसित तीन किस्में ऐसी ही हैं, ये सभी बायो फोर्टिफाइड किस्में हैं, जिनमें और भी कई खूबियां हैं।”
स्वास्थ्य
उत्तम स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद जरूरी
-अच्छी नींद से अगले दिन रहेंगे तरोताजा
-सारे काम आसानी से बनते चले जाएंगे
उत्तम स्वास्थ्य बहुत कुछ बातों पर निर्भर करता है। इनमें से गहरी और पर्याप्त नींद भी महत्वपूर्ण है। नींद अच्छी होने पर अगले दिन शरीर ताजगी भरा होता है और आपके सारे काम आसानी से निपटते चले जाते हैं। यदि नींद अच्छी नहीं हुई तो सारा दिन भरीपन, आलस और थकान सी महसूस होगी। किसी काम में मन नहीं लगेगा और काम पूरे होने में संदेह बना रहेगा।
जीवनशैली और आदतों बदलाव के माध्यम से सुकून भरी नींद ली जा सकती है। इसके लिए सोने के शेड्यूल का पालन करें, सप्ताहांत सहित, हर दिन एक ही समय पर बिस्तर पर जाएं और अगली सुबह जागें भी निर्धारित समय पर। सोने के समय की दिनचर्या निर्धारित करें- जैसे हलके-फुल्के विषय के बारे में पढ़ना, ध्यान करना या गर्म पानी से स्नान। शयनकक्ष में मोबाइल से दूरी बना कर रखना भी जरूरी है। सोने से कम से कम एक घंटे पहले मोबाइल को दूर कर दें, क्योंकि इससे निकलने वाली रोशनी नींद में बाधा डाल सकती है। सोने से पहले व्यायाम, भारी भोजन और टीवी देखने या वीडियो गेम खेलने जैसी गतिविधियों से बचें। सोने से पहले अपने मन और शरीर को शांत करने के लिए गहरी सांस लेना, मांसपेशियों को शिथिल करना या विश्राम देना या माइंडफुलनेस मेडिटेशन जैसी तकनीकों का अभ्यास करें। कुछ लोगों को रात में काफी पीने की आदत होती है, इससे बचें क्योंकि यह नींद की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है। अच्छी नींद के लिए नियमित व्यायाम करना अच्छा माना गया है। नियमित शारीरिक गतिविधि नींद की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकती है, लेकिन ठीक सोने के समय से पूर्व व्यायाम करना भी ठीक नहीं है।
अच्छी नींद के लिए ये उपाय आजामाएं
रात में अच्छी नींद लेने के लिए अनेक कारण जिम्मेदार हैं। अच्छी नींद के लिए स्वच्छ वातावरण सबसे पहली और आवश्यक शर्त है। अव्यवस्थित और गंदा शयनकक्ष तनाव पैदा कर सकता है और आराम करना मुश्किल बना सकता है। नींद के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए यहां प्रस्तुत हैं कुछ सुझाव-
-हर सुबह उठने के बाद अपना बिस्तर ठीक करें। अपने शयनकक्ष को साफ-सुथरा और व्यवस्थित रखें। कक्षा की नियमित रूप से सफाई जरूरी है। धूल भरे कक्ष में अच्छी नींद की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
-आरामदायक बिस्तर भी अच्छी नींद के लिए जरूरी है। गद्दा साफ़ और नर्म होने के साथ साफ़ सुथरा होना चाहिए। तकिया भी साफ़ और नर्म होना चाहिए। कई लोगों को कठोर तकिया लगाने की आदत होती है, लेकिन ऐसा करने से गर्दन में दर्द की समस्या हो सकती है।
-शयन कक्ष ऐसी जगह होना चाहिए, जहां किसी तरह का शोर न हो। घर छोटा होने पर शोर से बचने के लिए इयरप्लग का उपयोग किया जा सकता है। शयनकक्ष हवादार होने के साथ उसका तापमान बहुत कम या अधिक नहीं होना चाहिए। तापमान इतना हो कि आराम से नींद आ सके।
-शयन कक्षा में तेज रोशनी नहीं होनी चाहिए। कई लोगों को बिना रोशनी के सोने की आदत नहीं होती, ऐसे में हल्की रोशनी का बल्ब उपयोग किया जा सकता है। बाहर से कक्ष में आने वाली रोशनी को रोकने के लिए काले पर्दे या शेड्स का उपयोग भी किया जा सकता है।
-शयनकक्ष में टीवी या कंप्यूटर रखने से बचना भी जरूरी है। टीवी देखते-देखते सोने की आदत अच्छी नहीं मानी जाती। इसके अलावा शयनकक्ष में हल्की खुशबू (रूम फ्रेशनर) का प्रयोग करना भी अच्छी नींद के लिए उपयोगी हो सकता है।
शांतिपूर्ण और स्वच्छ वातावरण बनाकर, आप अपनी नींद की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और सुबह तरोताजा और पुनर्जीवित महसूस कर सकते हैं। इन युक्तियों को अपनाने के बाद भी यदि नींद न आने की समस्या बनी रहती है, तो चिकित्सक से परामर्श लेने में देर नहीं करें।
अच्छी सेहत के लिए भुने चने को शामिल करें अपनी डाइट में
-पौष्टिक तत्वों का खजाना है इसमें
-अनेक रोगों में पहुंचाता है फायदा
यदि आप भुना चना कभी-कभी खाते हैं तो, इसे अपनी प्रतिदिन की डाइट में शामिल कर सकते हैं। विशेष रूप से सर्दियों में रोस्टेड चना कितना फायदेमंद है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। भूना चना खाने में तो स्वादिष्ट होता ही है, साथ ही यह शरीर के लिए बहुत फायदेमंद और बेहद पौष्टिक माना जाता है। एक मुट्ठी भुने चने को सुबह नाश्ते में खाने, साथ ही एक गिलास दूध में शहद डालकर पीने से थकान और कमजोरी दूर होती है।
भूने चने में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, फोलेट, आयरन, कैल्शियम, पोटेशियम और फाइबर पाए जाते हैं। चने में ढेरों विटामिन्स होते हैं जो सेहत के लिए जरूरी है। भूने चने को सर्दियों में खाने से हड्डियां मजबूत होने के साथ पाचन तंत्र भी दुरुस्त रहता हैं। जाड़ों में इसे खाने से शरीर लंबे समय तक गर्म रहता है और मौसमी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। किसी और ड्राई फ्रूट की बात करें तो ये सस्ते भी हैं।
दिमाग होता है तेज
विशेषज्ञों का कहना है कि भुना हुआ चना दिमाग को तेज कर सकता है। एक मुठ्ठी भुना चना सेहत को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए काफी है। दरअसल, भुने चने में प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है, जिसके कारण ये सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।
एनीमिया मरीजों को लाभ
भुना चना खाने से शरीर में खून की कमी की समस्या से बचा जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार भुने चने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ती है। चने में आयरन की मात्रा ज्यादा होती है, जो शरीर में खून की कमी को दूर करती है।
कैल्शियम से हड्डियां मजबूत
प्रतिदिन भुना चना खाने से हड्डियां मजबूत होती हैं। जानकारों के अनुसार इसमे दूध और दही के समान कैल्शियम पाया जाता है और हड्डियों की मजबूती के लिए कैल्शियम कितना जरूरी है यह सभी जानते हैं।
इम्यूनिटी होती है मजबूत
रोस्टेड चने खाने से डायजेस्टिव सिस्टम मजबूत होता है, जिससे आपकी इम्यूनिटी भी स्ट्रॉन्ग होगी। चने में ढेरों विटामिन्स पाए जाते हैं, जो हेल्थ सिस्टम को मजबूत करते हैं। इसके अलावा भुना चना खाने से शरीर में ब्लड शुगर का लेवल नियंत्रण में रहता है। डॉक्टर्स भी शुगर के मरीजों को भुना चना खाने की सलाह देते हैं।
गर्भवती महिलाओं को लाभ
गर्भ के समय महिलाओं को उल्टी की समस्या होती है। अगर उल्टियां ज्यादा हो रही हों तो उसका प्रभाव बच्चे पर भी पड़ता है, क्योंकि शरीर पर जोर पड़ता है। ऐसी महिला को भुने चने का सत्तू पिलाना फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों के मुताबिक गर्भवती महिलाओं के लिए भुना चना काफी फायदेमंद है।
वजन में लाए कमी
भुने चने को हर रोज अपने भोजन में शामिल करने से वजन कम होता है। रोस्टेड चना शरीर से अतिरिक्त चर्बी को कम करता है। पोषक तत्व हेल्थ को मजबूती प्रदान करते हैं।
कमर दर्द में राहत
कमजोरी के कारण अक्सर महिलाओं को कमर में दर्द रहता है। ऐसी महिलाएं अगर दो मुट्ठी भुने चने रोजाना खाती हैं, तो उन्हें कमर दर्द में राहत मिलती है।
बदलते मौसम में खयाल रखें अपनी और अपनों की सेहत का
बारिश के समापन के बाद जाड़े का मौसम शुरू हो रहा है। जाड़े का मौसम हालांकि सेहत बनाने के लिए अनुकूल माना जाता है लेकिन जब मौसम बदलाव है, तब आमतौर पर सर्दी-जुकाम बुखार और गले की समस्याएं बढ़ जाती हैं। बच्चों और बुजुर्गों में इसका असर ज्यादा होता है। इसके अलावा जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर होती है, उनमें इसका जोखिम बना रहता है। ऐसे में बदलते मौसम में विशेष सावधानियों की जरूरत होती है। मौसम बदलने से होने वाली छोटी-मोती बीमारियों में हमेशा दवाएं लेने की बजाय आसान घरेलू उपाय करके भी लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
मौसम बदलने के साथ ही गले की परेशानी आम शिकायत है। पहले सर्दी लगती है और फिर गले में खराश की शिकायत हो जाती है। ऐसे में गला करता है और गले में जलन होने लगती है। गले में सूजन समस्या और भी बढ़ा देती है। गले की खराश को दूर करने के लिए हजारों देसी नुस्खे कारगर माने गए हैं। इन्हें आजमा कर देखें, हां तीन-चार दिन में असर न हो तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
भांप लेने से आराम
बदलते मौसम में संक्रमण के कारण नाक बंद होने की समस्या आम है। गले की परेशानी या बंद नाक में पुदीना के पत्तों या अजवाईन के साथ भाप लेने से लाभ मिलता है। यह कफ को कम करने के साथ नाक को खोलने और सांस लेने को आसान बनाती है। गले में होने वाले खराश और दर्द की समस्याएं कम करने में भी यह नुस्खा उपयुक्त माना गया है।
लौंग और शहद का सेवन
सूखी खांसी-गले में दर्द और खराश जैसी दिक्कतों को कम करने के लिए लौंग के चूर्ण और शहद को मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है। खांसी या गले में जलन होने पर दिन में 2-3 बार इसका सेवन किया जा सकता है। लौंग गले के संक्रमण को कम करने और शहद गले की खराश को कम करने में सहायक है। सर्दी-जुकाम की समस्याओं में इस उपाय से आराम मिल सकता है।
नमक पानी के गरारे
गले में दर्द और खराश को कम करने और सर्दी के लक्षणों में नमक पानी के गरारे करने से भी लाभ मिलता है। एक गिलास पानी में 1 टेबल स्पून नमक डालकर 5 मिनट तक उबालें। तापमान सामान्य होने पर इस पानी से गरारे करें। गले में खराश होने पर राहत के लिए दिन में 3-4 बार गरारे करने से लाभ मिलता है। गरारे के साथ गुनगुने पानी का सेवन भी करना ठीक रहता है।
तुलसी का काढ़ा
तुलसी अच्छी एंटीवायरल जड़ी-बूटियों में से एक है, जिसे खांसी, सर्दी और गले में खराश में प्रभावी माना गया है। 4-5 तुलसी के पत्तों को थोड़े से पानी में उबालकर इसे पीने से लाभ मिलता है। चाहें तो इसमें शहद, अदरक मिला सकते हैं। तुलसी के काढ़े में काली मिर्च, अदरक, लौंग, दालचीनी मिलाकर सेवन करने से भी लाभ मिलता है। यह काढ़ा प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में भी मददगार है।
पेपरमिंट
पेपरमिंट में सांस को खोलने की क्षमता है। यह गले की नली को साफ कर देता है जिससे सांस लेने में असुविधा नहीं होती। पेपरमिंट में मेंथॉल होता है जो म्यूकस को पतला कर देता है, जिससे गले में खराश और कफ से राहत मिलती है.
घी-काली मिर्च
दो चम्मच घी में आधा चम्मच काली मिर्च पाउडर हल्की आंच पर पकाएं और धीरे-धीरे इसे पिएं। काली मिर्च का एंटी-बैक्टीरियल गुण गले की खराश से राहत दिलाएगा। हालांकि, इसे सीमित मात्रा में ही लें।
योग
वर्षाकाल में अपनाएं योगासन और स्वस्थ रह कर मौसम का आनंद उठाएं
-वर्षाजनित बीमारियों में योग है लाभदायी
-शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली होती है मजबूत
वर्षा का मौसम सभी को खूब भाता है। चारों और हरियाली की चादर बिछ जाती है और वातावरण में ठंडक घुल जाती है, जो मई-जून की गर्मी से बड़ी राहत देने वाली होती है। लेकिन वर्षा का मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लाता है। इस मौसम में आप सर्दी-खांसी की चपेट में आ सकते हैं, फंगल इन्फेक्शन, दस्त, टाइफाइड आदि का भी खतरा बना रहता है। इसके अलावा मच्छर बढ़ने से इन दिनों में मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
बरसात के मौसम में होने वाली बीमारियों से बचने के लिए जहां आहार का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है, वहीं आपको योग से भी काफी लाभ हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार वर्षा काल में यदि आप योग को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लेते हैं, तो यह बीमारियों से बचाव में प्रभावी समाधान साबित हो सकता है। वर्षा ऋतु में मेडिटेशन करना मानसिक स्थिति में स्थिरता और शांति लाने में मदद कर सकता है। ध्यान के द्वारा आप मन को स्थिर कर, चिंताओं से मुक्त हो सकते हैं और एक नई ऊर्जा का अनुभव कर सकते हैं।
योग से बढ़े इम्यूनिटी
अक्सर जब बारिश होती है तो मौसम में ठंडक आ जाती है और लोग बीमार पड़ने लगते हैं। ऐसे में अगर आप बरसाती इन्फेक्शन से बचना चाहते हैं , तो आपको खासकर कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना होगा। ऐसे समय में आप कुछ योग मुद्राओं का सहारा ले सकते हैं, जो इम्यूनिटी पर असर डालती हैं। दरअसल, इम्यूनिटी बढ़ाने वाली ये यौगिक मुद्राएं शरीर के लिए अत्यधिक लाभ प्रदान करती हैं। भुजंगासन, मत्स्यासन और सर्वांगासन ऐसे ही वर्षाकाल में उपयोगी कुछ विशेष योग आसन हैं। इनकी नियमित प्रैक्टिस से आप अपने शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) को मजबूत करने और थाइमस ग्रंथि को बढ़ावा देने में सफल हो सकते हैं।
योग से मिले ऊर्जा
मानसून के दौरान लोगों को कई बार ऊर्जा की कमी महसूस होती है। ऐसे में मानसून के दौरान जब कभी आप थकान महसूस करें, तो आप वीरभद्रासन, अधोमुख शवासन, सेतु बंधासन और सूर्य नमस्कार का अभ्यास कर सकते हैं। इनको नित्य करने से न सिर्फ आपकी ताकत बढ़ेगी, बल्कि साथ ही आपके ब्लड फ्लो बराबर रहेगा।
प्राणायाम से लाभ
योग विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून के मौसम में प्राणायाम की नियमित प्रैक्टिस से भी कई तरह के लाभ उठाए जा सकते हैं। अगर आप आरामदायक वातावरण में नित्य प्राणायाम करेंगे तो यह आपके पूरे शरीर को लाभ पहुंचाएगा। प्राणायाम के लाभों को दोगुना करने के लिए गहरी, धीमी सांसों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
अनुलोम विलोम के फायदे
अनुलोम-विलोम भी एक बेहतरीन यौगिक क्रिया है जिसकी नित्य प्रैक्टिस से आप अपने ऊर्जा चैनलों का संतुलन बनाए रखने में सफल हो सकते हैं। इसके अलावा यह आपके फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाने का भी काम करता है। अनुलोम विलोम से आपकी श्वसन क्षमता यानी कि ब्रीथिंग कैपेसिटी भी मजबूत होती है। वर्षा काल में त्रिकोणासन, वृक्षासन, भुजंगासन, पवन मुक्तासन और शवासन जैसे योगासन भी शारीरिक लचीलापन बढ़ा सकते हैं और तनाव मुक्ति दे सकते हैं।
विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है प्राणायाम
-तनाव कम करे, याददाश्त और एकाग्रता बढाए
योग शरीर को स्वस्थ रखने में तो मददगार है ही मानसिक रूप से भी यह बहुत लाभदायक है। योग की क्रियाएं हर उम्र के व्यक्ति के लिए फायदेमंद हैं। छात्र जीवन के तनाव को दूर करने में भी योग बहुत लाभदायक है। इसकी मदद से याददाश्त और एकाग्रता बढ़ती है। अब परीक्षाएं नजदीक आ गई हैं, तो विद्यार्थियों को पढ़ाई के तनाव से बचने के लिए योग का सहारा लेना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए पांच योगासन उपयोगी बताएं गए हैं- प्राणायाम, सुखासन, दंडासन, एक पादासन और भुजंगासन। ये योगासन दिमाग को तीव्र करने में मददगार हो सकते हैं। इस बार प्राणायाम के बारे में जानते हैं।
प्राणायाम का सीधा अर्थ है अपनी सांसों पर नियंत्रण रखना। नियम से यदि प्राणायाम का अभ्यास किया जाए तो तनाव नहीं रहता है और पढाई पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। प्राणायाम करने के लिए श्वांस को धीमी गति से अंदर खींचकर फिर धीमी गति से ही बाहर निकालना होता है। प्राणायाम के कुल 12 प्रकार बताएं गए हैं-
नाड़ी शोधन: इसमें अपने पैरों को क्रॉस करके बैठना होता है, रीढ़ की हड्डी सीधी होती है। अंगूठे से नाक के दाएं छिद्र को दबाएं और बाएं छिद्र श्वास बाहर निकालें। इस प्रक्रिया को दूसरी तरफ से भी दोहराएं। इस पूरी प्रक्रिया को 10-15 मिनट तक दोहराएं।
शीतली प्राणायाम: यह प्राणायाम से शरीर को ठंडा रखने का काम करता है। आसन में बैठ जाएं। 6 बार गहरी सांस लें। अब अपने मुंह से ओ शेप बनाएं और जोर सांस अदर लें और नाक से सांस बाहर निकालें। इसे भी 5-10 बार दोहराएं।
उज्जयी प्राणायाम: इसमें सांसों से समुद्र की लहरों के समान आवाज निकालना है। इससे काफी आराम मिलता है। पूर्व की तरह आसन में बैठे रहें, जोर से सांस लें ताकि गले तक से आवाज आए। दूसरे चरण में मुंह को बंद रखें और नाक से सांस बाहर छोड़ें। इसे कुल 10-15 बार करें।
कपालभाति प्राणायाम: उसी आसन में बैठ कर सामान्य तरीके से 2-3 बार सांस लें। बाद में जोर से सांस अंदर लेना है और उतने ही जोर से छोड़ना है। सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया का असर पेट पर दिखना चाहिए। इस क्रिया को 20-30 बार करें।
दीर्गा प्राणायाम: इस क्रिया को लेटकर किया जाता है। तेज सांस लें ताकि आपका पेट फूले, थोड़ी देर इसी मुद्रा में रहें, फिर धीरे-धीरे सांस बाहर की ओर छोड़ें। दूसरी और तीसरी बार और भी गहरी सांस अंदर लेनी है और ऐसे ही थोड़ी देर रोकर उसे बाहर छोड़ना है। इस क्रिया को 5-6 बार करें।
विलोम प्राणायाम: इसमें दो तरह की क्रिया होती है। पहले भाग में सांस लेना है और उसे थोड़ी देर तक रोक कर रखना है और दूसरे भाग में सांस छोड़कर थोड़ी देर रुकना है। इस प्रक्रिया को 5-6 बार दोहराएं ।
अनुलोम प्राणायाम: ये विलोम प्राणायाम के जैसा ही होता है। इसमें भी नाक के दोनों छिद्रों से बारी-बारी से सांस लेना और छोड़ना होता है। एक से सांस लेते समय दूसरे छिद्र को पूरी तरह से बंद रखें, इसी प्रक्रिया को दूसरी नाक से भी सांस लेने के दौरान अपनाएं।
भ्रामरी प्राणाया: इस प्राणायाम में आंख और कान बंद रहते हैं। कानों को अपने अंगूठों सें बंद करें और अपनी अंगुलियों की मदद से आंखों को बंद करें। अब ॐ का उच्चारण करते हुए एक गहरी सांस लें और छोड़ें। इस प्रक्रिया को 10-15 बार करें।
भस्त्रिका प्राणायाम: ठंड के दिनों में शरीर को गर्म रखने के लिए इस प्राणायाम से लाभ मिलता है। पैर क्रॉस करके आसन ग्रहण करें और तेज गति सांस अंदर लें और छोड़ें। कुछ राउंड के बाद इस प्रक्रिया को धीमा कर दें और ऐसे ही समाप्त करें।
शीतली प्राणायाम: मुंह से सांस लेते रहें। इस दौरान अपनी जीभ को रोल किए रहें। ठुड्डी को आगे की तरफ किए रहें और कुछ सेकेंड के लिए सांसों को रोकें। अब नाक की मदद से सांस बाहर निकालें। इससे शरीर में ठंडक आती है।
मूर्छा प्राणायाम: यह थोड़ा मुश्किल प्राणायाम है क्योंकि इसमें बिना सांस लिए केवल सांस छोड़ना होता है। इससे आपके शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है और एक समय पर अचेत की मुद्रा में आ जाते हैं। जब नींद की मुद्रा में अपने आप सांस लेते हैं तो चेतना आती है।
पलवनी प्राणायाम: यह प्राणायाम पानी के अंदर किया जाता है और इसे अनुभवी योगी ही कर सकता है। इसमें अपनी सांसों पर इतना नियंत्रण रखना होता है कि आप पानी के अंदर भी शांत मुद्रा में रह सकते हैं।
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योग से स्वस्थ रहता है मन और शरीर
– आत्मा से परमात्मा से जोड़ने का माध्यम
व्यक्ति को अपनी दिनचर्या योग के साथ शुरू करनी चाहिए। इससे मन और शरीर स्वस्थ रहते हैं। प्रायः योग को शरीर के स्वास्थ्य से जोड़कर ही देखा जाता है, लेकिन वास्तव में योग न केवल शरीर और आत्मा बल्कि परमात्मा से भी संबंधित है। योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ अर्थात वह अवस्था जो आत्मा से परमात्मा को जोड़े। सर्वप्रथम यह जानना जरूरी है की योग का अर्थ सिर्फ व्यायाम या आसन मात्र नहीं है, आसन तो योग का एक भाग है। योग का रूप तो विस्तृत है। योगी केवल शरीर पर ध्यान नहीं देते अपितु वे अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित कर ईश्वर में ध्यान लगाते हैं और उनसे जुड़ने का प्रयास करते हैं। योग का प्रथम अनुभव शरीर से ही संबंधित है। इसलिए शरीर का ध्यान रखना आवश्यक है ताकि स्वयं का ठीक तरह से संचालन किया जा सके। योग का प्रथम कार्य ही शरीर को स्वस्थ बनाना है। योग करने से कुछ ही समय में व्यक्ति शरीर को अधिक स्वस्थ, रोग मुक्त और ऊर्जावान अनुभव करने लगता है।
योग का मस्तिष्क पर भी प्रभाव पड़ता है। योग से व्यक्ति की भावनाओं और विचारों की शुद्धि होना आरंभ होती है। इस अनुभव में मस्तिष्क से अवसाद, चिंता, नकारात्मक विचार आदि पर नियंत्रण संभव हो जाता है। योग का तीसरा अनुभव मनुष्य को अध्यात्म से जोड़ता है, जो योग का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। यदि व्यक्ति इस अनुभव तक पहुंच जाता है तो वह संसार में रहते हुए भी सांसारिक बंधनो से मुक्त रहता है और परमात्मा के ध्यान में लीन रहता है। यह स्थिति उसे ऐसी अवस्था में ले जाती है, जहां सिर्फ आनंद है।
योग के चार प्रकार हैं-
कर्म योग: कर्म योग का सीधा संबंध व्यक्ति के कर्मों से है। शास्त्र कहते हैं कि हम इस संसार में जिस प्रकार की परिस्थितियों का सामना करते हैं, सुख या दुःख भोग रहे हैं, जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जो हमे प्राप्त हुआ और जो प्राप्त नहीं हुआ, जिसकी हम गहन इच्छा रखते हैं, यह सब हमारे पिछले कर्मों के आधार पर ही तय होता है। इसलिए भविष्य को अच्छा बनाने के लिए हमे वर्तमान में अच्छे कर्म करने होंगे। कर्म योग का पालन करने वाले व्यक्ति सुकर्म करते हुए निस्वार्थ होकर जीवन जीते हैं और दूसरों की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
भक्ति योग: भक्ति योग में परमपिता परमेश्वर पर ध्यान केंद्रित करना बताया गया है। इसमें अपनी समस्त ऊर्जा, विचारों और चित्त को भक्ति में केंद्रित करना होता है। इसके साथ-साथ भक्ति योग हमें सहिष्णुता और स्वीकार्यता प्रदान करता है।
ज्ञान योग: योग की सबसे कठिन और प्रत्यक्ष शाखा ज्ञान योग है। इसमें बुद्धि पर कार्य कर विकसित किया जाता है। ज्ञान योग में ग्रंथों का गंभीर और विस्तृत अध्ययन कर जीवन को उचित ढंग से समझकर बुद्धि को ज्ञान के मार्ग पर अग्रसर किया जाता है। वास्तव में ज्ञानी वही है जो स्वयं के अस्तित्व का उद्देश्य समझता है। ब्रह्म का सही अर्थ जानता है और उस परमात्मा में ध्यान केंद्रित कर ही जीवन व्यतीत करता है।
राजयोग: राज का अर्थ है सम्राट। इसमें व्यक्ति एक सम्राट के समान स्वाधीन होकर, आत्मविश्वास के साथ कार्य करता है। राजयोग आत्म अनुशासन और अभ्यास का मार्ग है।
योग के आठ चरण
इसके अलावा महर्षि पतंजलि ने योग के आठ प्रमुख अंग बताएं हैं। इन आठ अंगों में पहले चरण को सफलतापूर्वक कर लेने के बाद प्रबल इच्छाशक्ति से आठवें चरण तक पहुंचा जा सकता है। आठ अंग हैं यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान अथवा एकाग्रता और समाधि। राजयोग में आसन योग का सर्वाधिक महत्त्व है और यह अन्य अंगों की तुलना में सरल भी है। पतंजलि ने कहा है कि ईश्वर को जानने के लिए, अपने और इस जन्म के सत्य को पहचानने के लिए आरंभ शरीर से ही करना होगा। शरीर बदलेगा तो चित्त बदलेगा, चित्त बदलने पर बुद्धि बदलेगी। जब चित्त पूर्ण रूप से स्वस्थ होगा, तब ही व्यक्ति की आत्मा परमात्मा से योग में सक्षम हो सकेगी।
योग के सभी अंगों के उप अंग भी हैं। वर्तमान में साधारण व्यक्ति केवल तीन ही अंगों का पालन करते हैं आसान, प्रायाणाम और ध्यान। इनमें से भी ध्यान करने वाले व्यक्तियों की संख्या कम है। बहुत से लोग प्रथम पांच अंगों में ही पारंगत होने का प्रयास करते हैं, वे योग के आठों अंगों को प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं करते। इसी वजह से योग का सम्पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता। वास्तव में योगी आठों अंगों का पालन कर स्वयं को ईश्वर से जोड़ते हैं। वर्तमान में राजयोग किया जाता है और इसके अष्टांगों में आसन, प्राणायाम और ध्यान सबसे अधिक प्रचलन में हैं। आइए, जानते हैं राजयोग के अष्टांगों के बारे में-
यम: सामाजिक व्यवहार का पालन करने को यम कहा गया है। जैसे लोभ न करना, किसी को प्रताड़ित न करना, चोरी डकैती, नशा, व्यभिचार न करना। बिना कुछ गलत किए सत्य के आधार पर जीवन निर्वाह करना। अर्थात आत्म नियंत्रण यम का भाग है।
नियम: नियम का संबंध व्यक्ति के आचरण से है। चरित्र, आत्म अनुशासन आदि आदर्श व्यक्तित्व के अभिन्न अंग हैं। राजयोग की इस शाखा में इस प्रकार के व्यक्तित्व का अनुसरण करना होता है।
आसन: शरीर के अंगों को उचित रूप से संचालित रखने के लिए जो योगिक क्रियाएं की जाती हैं, उन्हें आसन कहा गया है।
प्राणायाम: प्राणायाम श्वास नियंत्रण की विस्तृत प्रक्रिया है। प्राणवायु को संतुलित रूप से ग्रहण करना, नियमित रूप से लंबी और गहरी श्वास लेना आदि इसके भाग हैं। यह कठिन प्रक्रिया है। इस पर सिद्धि प्राप्त करने वाले व्यक्ति को दीर्घायु और सफल जीवन प्राप्त होता है।
प्रत्याहार: प्रत्याहार का अर्थ है संसार में किसी भी वस्तु या मनुष्य में मोह या आसक्ति न होना। संसार में रहते हुए, सभी कार्य करते हुए चाहे वह विवाह करना हो या संतान उत्पत्ति हो या अन्य कार्य, व्यक्ति को प्रत्याहार का पालन करना चाहिए अर्थात सामाजिक कार्य करते हुए भी किसी भी चीज़ से आसक्ति नहीं होनी चाहिए।
धारणा: मन की एकाग्रता ही धारणा कहलाती है। एकाग्रता मनुष्य को सफलता की ओर अग्रसर करती है। योग में अनेक ऐसी क्रियाएं, जो एकाग्रता बढ़ाने में मददगार हैं।
ध्यान: इस अवस्था में निर्विचार होकर श्वासों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। सम्पूर्ण ध्यान श्वास लेने और छोड़ने की प्रक्रिया पर ही केंद्रित किया जाता है। इस प्रकार समय के साथ व्यक्ति ध्यान की प्रक्रिया करने में सफल होता है, जिससे मन की शान्ति मिलती है।
समाधि: ध्यान पर जब नियंत्रण हो जाता है जब व्यक्ति समाधि की अवस्था में पहुंचता है अर्थात परब्रह्म में लीन हो जाता है। समाधि की अवस्था में व्यक्ति परमानंद प्राप्त करता है।
योग: आरंभ कब और कैसे हुआ
लगभग 15000 वर्ष पूर्व हिमालय में एक योगी पहुंचे थे। उनके भूत, वर्तमान आदि के विषय में कोई नहीं जानता था। वे हमेशा शांत रहते थे। उनकी देह और चेहरे पर इतना तेज था कि धीरे-धीरे उनके दर्शन के लिए लोगों की भीड़ जुटने लगी। सभी उनके बारे में जानना चाहते थे लेकिन वे कोई उत्तर नहीं देते थे। योगी महीनों तक इसी तरह बैठे रहे। यह देख लोग किसी चमत्कार की अपेक्षा कर रहे थे। बिना अन्न-जल ग्रहण किए, बिना कोई नित्य क्रिया किए वे एक स्थान पर स्थिर थे। लोगों को केवल इस बात से उनके जीवित होने का प्रमाण मिल रहा था कि कभी-कभी उनकी आंखों से आंसू बहते थे। ये आंसू परम आनंद के संकेत थे। लेकिन योगी ने कभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्हें एक सी अवस्था में देख धीरे-धीरे लोगों ने वहां से जाना शुरू कर दिया और अंत में केवल सात लोग ही उनके आसपास रुके। वे यह समझ गए थे कि योगी निरंतर एक ही स्थिति में बैठे हैं अर्थात वे इस संसार के बंधनों, भौतिकता आदि से परे हैं अन्यथा ऐसा संभव नहीं। इन सात लोगों को सप्तऋषि कहा गया और योगी आदियोगी थे। सप्तऋषि आदियोगी के प्रथम शिष्य थे। उन सात लोगों की रुचि देख आदियोगी ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा देना आरंभ किया। उनकी शिक्षा अनेक वर्षों तक चली। जब एक दिन सूर्य की दिशा परिवर्तित हो रही थी, सूर्य दक्षिण की ओर मुड़ा तब वे भी दक्षिण की ओर मुड़कर मनुष्य होने का विज्ञान समझाने लगे। यह वह तिथि थी जो प्रति वर्ष 21 जून को आती है। इसी दिन योग का आरंभ हुआ था। इसीलिए इस दिन को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जब धरती पर कोई धर्म, जात पात नहीं थी, योग का आरंभ तभी हो गया था। उन्होंने सप्तऋषियों को मनुष्य होने का यंत्र विज्ञान विस्तार रूप से वर्णित किया जिसमें उन्होंने 112 मार्ग बताए, जिससे व्यक्ति अपनी वास्तविक स्थिति अथवा परम प्रकृति को प्राप्त कर सकता है और सम्पूर्ण योग विज्ञान इन्हीं मार्गों का अनुसरण करता आया है। सप्तऋषि योग विद्या का प्रचार करने साथ भिन्न-भिन्न दिशाओं में गए और इस तरह योग का आरंभ हुआ, जिसका लाभ आज हम सब उठा रहे हैं।
शिक्षा
शिक्षा का उद्देश्य कौशल और विशेषज्ञता के साथ नेक इंसान तैयार करना
-शिक्षा और शिक्षक पर वैज्ञानिक, शिक्षक और पूर्व राष्ट्रपति स्व.डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के प्रेरक विचार
शिक्षा का उद्देश्य कौशल और विशेषज्ञता के साथ अच्छे इंसान तैयार करना है। शिक्षा सत्य की खोज है, यह ज्ञान और आत्मज्ञान से होकर गुजरने वाली एक अंतहीन यात्रा है। शिक्षक प्रबुद्ध इंसानों को तैयार कर सकते हैं। शिक्षाविदों को छात्रों में जिज्ञासा, रचनात्मकता, उद्यमशीलता और नैतिक नेतृत्व की भावना का निर्माण करना चाहिए और उनका रोल मॉडल बनना चाहिए।
शिक्षा के महत्व को लेकर ये प्रेरक विचार हैं वैज्ञानिक, लोकप्रिय शिक्षक और देश के पूर्व राष्ट्रपति स्व.डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के। वे कहते थे कि छात्र भारत को विकासशील देश में बदलने का सामर्थ्य रखते हैं और इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डॉ.कलाम न केवल एक कुशल वैज्ञानिक थे, बल्कि वे एक प्रतिष्ठित शिक्षक भी थे, जिन्हें छात्रों से बेहद स्नेह था। उन्होंने लगातार उन्हें बड़े सपने देखने और अपने विचारों को वास्तविकता में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि शिक्षक समाज की नींव हैं क्योंकि उनपर आने वाली पीढ़ियों को गढ़ने की जिम्मेदारी है। शिक्षण महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता और भविष्य को आकार देता है। वे कहते थे कि अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान होगा।
लक्ष्य हमेशा बड़ा हो
शिक्षक की भूमिका में उन्होंने विद्यार्थियों में कभी भेदभाव नहीं किया। मेधावी छात्रों के साथ कमजोर और कक्षा में अंतिम बेंच पर बैठने वाले विद्यार्थियों को वे समान महत्व देते थे। उन्होंने कहा भी है कि देश का सबसे अच्छा दिमाग कक्षा की आखिरी बेंचों पर पाया जा सकता है। सभी में समान प्रतिभा नहीं होती, लेकिन हम सभी के पास अपनी प्रतिभा विकसित करने का समान अवसर तो है ही। इसके साथ ही उत्कृष्टता आकस्मिक नहीं होती, यह एक प्रक्रिया है। रचनात्मकता का अर्थ है एक ही चीज़ को देखना लेकिन अलग तरह से सोचना। वे छोटे लक्ष्य को अपराध बताते विद्यार्थियों से कहते हैं लक्ष्य हमेशा महान रखें।
सफलता के लिए रचनात्मकता चाहिए
डॉ. कलाम कहते हैं कि किसी भी विषय में सफलता के लिए रचनात्मकता सबसे ज़रूरी है और प्राथमिक शिक्षा वह समय है, जब शिक्षक उस स्तर पर बच्चों में रचनात्मक्ता ला सकते हैं। एक महान शिक्षक बनने के लिए तीन बातें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं- ज्ञान, जुनून और करुणा। इसी तरह पुस्तकों के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा है-एक अच्छी पुस्तक हज़ार मित्रों के बराबर होती है, जबकि एक अच्छा दोस्त एक सम्पूर्ण लाइब्रेरी के बराबर होता है। वे कहते थे कि शिक्षकों को छात्रों के बीच जांच की भावना, रचनात्मकता, उद्यमशीलता और नैतिक नेतृत्व की क्षमता का निर्माण करना चाहिए और उनका आदर्श बनना चाहिए। साथ ही एक छात्र का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण यह होना चाहिए कि वह हमेशा अपने अध्यापक से सवाल पूछे। वास्तविक अर्थों में शिक्षा सत्य की खोज है, यह ज्ञान और आत्मज्ञान से होकर गुजरने वाली एक अंतहीन यात्रा है।
स्वाभिमान बढाती है शिक्षा
डॉ.कलाम कहते हैं-असली शिक्षा एक इंसान की गरिमा को बढ़ाती है और उसके स्वाभिमान में वृद्धि करती है। सीखने से रचनात्मकता आती है, रचनात्मकता हमें सोचने की तरफ बढ़ाती है, सोचने से ज्ञान मिलता है और ज्ञान ही व्यक्ति को महान बनाता है। युवाओं के लिए उनका स्पष्ट संदेश है-अलग सोचने का काम करें, आविष्कार करने का साहस रखें, अनदेखे रास्तों पर चलने का साहस रखें, असंभव को खोजने और समस्याओं पर जीत हासिल करके सफल होने का साहस रखें।
यह मैटर बॉक्स में डॉ.कलाम के फोटो के साथ लगाना है
डॉ. कलाम का संक्षिप्त परिचय
डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वरम नामक स्थान पर हुआ था। डॉ. कलाम की प्रारंभिक शिक्षा रामेश्वरम में हुई। बाद में उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। ग्रेजुएशन के बाद वे ऐरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी चले गए। फिर वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में शामिल हुए, जहां उन्होंने उपग्रह लांचर और बैलिस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी के निर्माण पर काम किया। डॉ. कलाम को भारत को ‘नाग’, ‘आकाश’ और ‘अग्नि’ जैसी मिसाइलें देने के लिए जाना जाता है। उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2002 में वे भारत के 11वें राष्ट्रपति चुने गए। वे अपनी विनम्रता, प्रतिबद्धता और जीवन के सभी क्षेत्रों के व्यक्तियों, विशेषकर युवाओं के साथ मित्रता करने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे। 27 जुलाई 2015 आईआईएम, शिलॉंग में छात्रों को संबोधित करते समय उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे हमारे बीच नहीं रहे।
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास
-इसलिए शिक्षा के साथ खेल जरूरी
-खेल व्यायाम का ही दूसरा रूप
मनुष्य को उन्नति के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ता है। सफलता उसी को मिलती है, जो संघर्ष के लिए मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूप से स्वस्थ होता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए व्यायाम जरूरी है। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। एक अच्छे खिलाड़ी में साहस, उत्साह और मिलकर काम करने की क्षमता होती है। खेलों में नियमित रूप से भाग लेने वाला विद्यार्थी स्वस्थ, फुर्तीला और अच्छे व्यक्तित्व का धनी होता है।
पूर्व में जो माता-पिता खेलों का विरोध करते थे, उन्होंने भी खेलों का महत्व जान लिया है। अब वे भी अपने बच्चों को ऐसे विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने भेज रहे हैं, जहां शिक्षा के साथ खेलों को भी समुचित स्थान दिया जाता है। केवल पुस्तकों के ज्ञान से ही बालक का सर्वागीण विकास नहीं होता बल्कि खेलों से ही संतुलित मन और मस्तिष्क का विकास होता है। खेलों से व्यायाम होता है, मनोरंजन भी होता है, स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना जगती है, सहयोग से काम करने की भावना जन्म लेती है और सृजनात्मक वृत्ति का विकास भी होता है।
पराजय अवरोध नहीं चुनौती
भोजन और हवा के बिना जैसे जीवन नहीं चलता, ठीक उसी तरह से खेल और व्यायाम के बिना जीवन में जड़ता आ जाती है। खेल मनुष्य में साहस, उत्साह और धैर्य लाते हैं। खेल के मैदान में उतरा हुआ व्यक्ति कभी अपनी असफलता पर निराश होकर शांत नहीं बैठता। वह अपनी पराजय को भी हंस कर स्वीकार कर लेता है। वह उससे सबक सीखता है और फिर से जीतने के लिए प्रयासरत हो जाता है। खिलाड़ियों के लिए पराजय अवरोध नहीं, बल्कि चुनौती है, जिससे उसके संकल्प में दृढ़ता आती है।
मानवीय गुणों का विकास
खेलों से न केवल शरीर को बल मिलता है, वरन् व्यक्ति में अनेक मानवीय गुणों का विकास भी होता है। जीवन के मानवीय पक्ष में प्रेम, सहयोग, सहनशीलता का अलग महत्व है। खेल बालक में अनायास ही इन गुणों को निखारते हैं। खेल ही खेल में बालक सहयोग के महत्व को भी समझ सकता है। भारत की शिक्षा व्यवस्था में पूर्व में खेलों के प्रति दृष्टिकोण सही नहीं था। यह मान्यता चली आ रही थी कि जिस बालक का ध्यान खेलों लग गया, वह बिगड़ जाएगा। परिणामस्वरूप ‘खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब’ उक्ति भी प्रचलित हुई लेकिन अब परिस्थितियां बिलकुल बदल गई हैं। शिक्षा के साथ खेलों का महत्व भी लोग समझ गए हैं।
खेलों से आता है अनुशासन
खेलते समय खिलाडिय़ों को खेल के नियमों का पालन करना होता है, जो खिलाड़ी नियमों को तोड़ते हैं, उन्हें खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाता है। नहीं तो प्रतिद्वंदी दल को इसका लाभ मिलता है। इस प्रकार खेल के दौरान कुछ नियमों में बंधकर खेलने से बालकों में अनुशासन की भावना का विकास होता है, जो जीवन में सफलता की पहली सीढ़ी है।
खेलों का महत्व
केंद्र और राज्य सरकारों ने भी शिक्षा में खेलों के महत्व को समझा है, जिसके चलते अधिकतर राज्यों ने शारीरिक शिक्षा को स्कूलों में अनिवार्य कर दिया है। इतना ही नहीं खेलों और विभिन्न प्रकार के व्यायामों का सही ढंग से प्रशिक्षण देने के लिए सभी स्कूलों में खेल प्रशिक्षक नियुक्त किए जाते हैं। खेलों को शिक्षा में समुचित स्थान मिलने से सामाजिक जीवन का स्तर उन्नत, सुव्यवस्थित और सुंदर होगा। खेल और शिक्षा का जीवन में साथ-साथ होना हर प्रकार से लाभप्रद है। इससे छात्रों का स्वास्थ्य तो सुधरेगा ही बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिता में कुछ कर दिखाने का सामर्थ्य भी उनमें जागेगा।
योरपीय देशों में बदल रहे स्कूल:
किताबों की बजाय खेतों में तालाब के किनारे सबक
शिक्षा का अर्थ मात्र किताबी ज्ञान नहीं बल्कि बच्चे के व्यक्तित्व का समग्र विकास होना चाहिए। इसे लेकर दुनिया भर में लगातार अनुसंधान चल रहे हैं। स्कूलों का दृश्य ही बदलता जा रहा है, जहां जीवन के सबक नए अंदाज से बच्चों को दिए जा रहे हैं।
दरअसल कई योरपीय देशों में स्कूलिंग का तरीका बदल रहा है। बंद दरवाजों के बाहर बच्चों को जिन्दगी के अनुभव देने के लिए ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में फारेस्ट स्कूल या बुश काइन्डीज खुल रहे हैं। कई देशों में थोड़ी पाबंदियों के साथ ऐन्वायरो स्कूल का कॉन्सेप्ट भी पापुलर हो रहा है। आपको यह जानकर हैरत होगी की न्यूजीलैंड के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा अब स्कूलों के साथ खेतों में भी हो रही है। देश की स्कूलों में पढ़ रहे 8 से 12 साल तक के बच्चों को हफ्ते में एक दिन खेतों-नदियों के बीच गुजारना होता है। यह उनकी शिक्षा का ही हिस्सा है। इन प्राकृतिक स्कूलों में बच्चे मछलियों को खाना खिलाते हैं और कीचड में लोट भी लगाते हैं। उन्हें खेतों में रहने वाले मवेशियों की देखभाल करने का तरीका भी सिखाया जा रहा है।
न्यूजीलैंड में स्थानीय माओरी जीवनशैली से बच्चों को जोड़ने की पहल भी की गई है। शुरुआत में अभिभावकों को यह सब अटपटा लग रहा था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें यह बात समझ में आने लगी है कि स्कूल के बाहर कुछ ख़तरा जरूर हो सकता है, लेकिन इस तरह से बच्चे जिन्दगी की असली चुनौतियों का सामना करने के लिए ज्यादा अच्छी तरह से तैयार हो सकेंगे। इस तरह की क्लास में बच्चे मन से फैसले लेते हैं। छह साल की एम्मा को मुर्गियां पकड़ना पसंद है, पांच साल का रीड खेतों में किसानों के साथ मेड बनाता है, मिट्टी में खेलता है। दूसरी ओर बच्चों का दूसरा झुंड जंगल के बीच से लकडियां एकत्र कर लाता दिखाई देता है। वे कैम्पफायर की तैयारी कर रहे हैं। स्कूल के संचालक लियो स्मिथ वॉकी-टॉकी पर टीम को निर्देशित करते हुए सतत निगरानी कर रहे हैं। आठ साल का एस्टन विलकॉक्स अचानक चीखकर सभी को अपने पास बुलाता है, दरअसल, उसे एक मृत खरगोश मिला है। वह उसे छूने वाला था कि उसके मेंटर ने रोक दिया। उसे बताया गया कि यह क्यों सुरक्षित नहीं है और खरगोश का शरीर अब पहले जैसा नर्म क्यों नहीं रह गया है। उन्होंने सभी बच्चों को डीकम्पोजिशन के बारे में समझाया। दो मिनट में ही बच्चों को लाइफ साइकल और पर्यावरण संरक्षण जैसी बातों के बारे में समझा दिया गया। न्यूजीलैंड में अब ऐसे स्कूल तेजी से बढ़ रहे हैं। पांच सालों में इनकी संख्या 100 के आसपास पहुंच गई है।
पेड़ कटा तो रोने लगे
वेलिंग्टन स्थित विक्टोरिया यूनिवर्सिटी में एजुकेशन प्रोफेसर जेनी रिची ने 2018 में एक शोध किया था। शोध में पाया गया कि माओरी ज्ञान की मदद से बच्चों और प्रकृति के साथ बेहतर तरीके से जोड़ा जा सकता है। ऐसे ही एक स्कूल के संस्थापक लियो स्मिथ बताते हैं की हमने इस आधार पर सामूहिक हित की बात समझाई थी। इसका असर हाल ही में दिखा। कुछ लोगों ने 20 पेड़ काट दिए। कटे पेड़ों को देख कर बच्चे रो रहे थे। यह दृश्य सभी को अभिभूत करने वाला थी, जल्दी ही कटे पेड़ों के स्थान पर नए पेड लगाए गए और वहा रहने वाले लोगों को पेड़ों की रक्षा करने का संकल्प दिलवाया गया।
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नई शिक्षा नीति:
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को विकसित करना उद्देश्य
-स्कूल बैग का वजन कम कैसे हो
-उत्कृष्ट स्तर पर शोध करना
विगत दो वर्षों के बाद समय आ गया है, जब सुबह-सुबह स्कूल बसें सड़कों पर नजर आ रही है। अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने और वापस लाने में व्यस्त हो गए हैं। सभी खुश हैं क्योंकि बंद कमरों में ऑनलाइन पढ़ाई से सभी ऊब चुके थे। बच्चों के मोबाइल, लैपटॉप लिए बैठे रहने से एकाकी माहौल बनता जा रहा था। वे खेलना-कूदना भूलते जा रहे थे। उनकी रचनात्मकता और कल्पना शक्ति पर जैसे जंग लग रही थी। अब इससे राहत मिली है और बच्चों ने विद्यालयों में अध्ययन करना शुरू कर दिया है, जो उनके सर्वांगीण विकास का महत्वपूर्ण है। इस भूमिका के पीछे उद्देश्य नई शिक्षा नीति से रूबरू कराना है। आइए जाने क्या है नई शिक्षा नीति….बीते दो वर्षों के दौरान केन्द्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल व मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों ने 7 अगस्त 2020 को नई शिक्षा नीति प्रस्तावित की है।
नई शिक्षा नीति के प्रमुख तथ्य
नई शिक्षा नीति (NEP) 1986 में बनी और 1992 में उसे संशोधित किया गया था। लगभग तीन दशक बाद 21 वीं सदी की मांगों और जरूरतों के प्रति छात्रों को तैयार करने के लिए NEP-2020 लांच की गई। अब तक शिक्षा नीति ‘What you think’ (आप क्या सोचते हैं) पर केंद्रित थी लेकिन नई शिक्षा नीति अब ‘How to think’ (कैसे सोचना है) पर केंद्रित रहेगी।
स्व मूल्यांकन पर जोर
प्रत्येक बच्चे की क्षमता की पहचान एवं उसका विकास करना, शिक्षा को लचीला बनाना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को विकसित करना, बच्चों को भारतीय संस्कृति से जोड़ना, उत्कृष्ट स्तर पर शोध करना, बच्चों को सुशासन सिखाना एवं सशक्तिकरण, स्व मूल्यांकन पर जोर देना, तकनीकी शिक्षा, विभिन्न प्रकार की भाषाएं, बच्चों की रचनात्मकता एवं तार्किक शिक्षा को विकसित करना आदि नई शिक्षा नीति के मसौदे में है।
NEP 2020 क्या है?
पूर्व में शिक्षा (10 +2) पैटर्न पर होती थी और (5 + 3 +3 + 4 ) का पैटर्न पर अमल किया जाएगा । इसके तहत 3 से 8, 8 से 11, 11 से 14 तथा 14 से 18 वर्ष की आयु में बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। इस रूपरेखा के पहले भाग में प्री स्कूल के 3 वर्ष, प्राथमिक स्कूल की पहली व दूसरी कक्षा, कक्षा 3 से 5 , कक्षा 6 से 8 एवं कक्षा 9 से 12 शामिल हैं।
नई नीति विद्यार्थियों के समग्र विकास के लिए तैयार की गई है। इसमें स्कूल बैग का वजन कम कैसे किया जाए, अध्ययन को रोमांचक कैसे बनाया जाए इस पर कार्य होगा। पाठ्यक्रमों में क्षेत्रीय भाषाएं, बहु -विषय चयन पर आधारित शिक्षा , विश्वविद्यालय में स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश एवं निकासी की सुविधाएं शामिल हैं। उपरोक्त बिंदुओं के अलावा और भी अनेक महत्वपूर्ण तथ्य हैं।
सकारात्मक पहलू
नई नीतियों से शिक्षा का सार्वभौमीकरण होगा तथा भारत ‘वैश्विक ज्ञान महाशक्ति’ बनने योग्य होगा। साथ ही नई पीढ़ी का देश के साथ जुड़ाव, अपनी संस्कृति से लगाव बढ़ेगा एवं उनमें भारतीय होने पर गर्व की भावना विकसित होगी।