डॉ. युधिष्ठिर त्रिवेदी

एमबीबीएस, एमडी

मो.नं.86196-72271

 साफ और सुंदर प्राकृतिक स्थलों का पर्यटन मन और शरीर दोनों की थकान दूर करने वाला होता है, पर जब साथ में इतिहास और देशप्रेम जुड़ जाता है, तो यह असाधारण और अविस्मरणीय बन जाता है। अंडमान निकोबार द्वीप समूह की यात्रा ऐसी ही यादगार है, इस यात्रा ने देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले अनेक ऐसे शहीदों, जिन्हें भुला दिया गया था, की याद ताजा कर दी।                                       

27 दिसंबर की सुबह अहमदाबाद से रवाना होकर मुंबई होते हुए दोपहर में पोर्ट ब्लेयर  (अब शहीद स्वराज द्वीप समूह ) पहुंचे। यहां वीर सावरकर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अभी नया ही बना है। हवाई अड्डे पर ही एक महान किंतु देशभक्त वीर सावरकर की मूर्ति कुछ  समय पूर्व ही लगाई गई है। साफ-सुथरी सड़कें, चारों तरफ हरियाली, बिना किसी ट्रैफिक समस्या के होटल पहुंचकर लंच लिया। मौसम खुशनुमा था, दिसंबर महीने में भी सर्दी का नामोनिशान नहीं था। चेन्नई और बंगलुरु से ज्यादा दक्षिण के बावजूद  यहां भोजन में दाल, भात, सब्जी, सलाद, पापड़ और खीर उपलब्ध थी। विशेष बात यह कि सभी हिंदी जानते थे और बोलते भी थे। कभी अंडमान की कुख्यात सेल्यूलर जेल में देशभर से कैदी लाकर यहीं रखे जाते थे। सजा पूरी होने पर वे यहीं बस जाते थे।  आज उन्हीं की चौथी पीढ़ी को सिर्फ इतना ही याद है कि हम बनारस, पटना, कपूरथला या उडुपी के पास किसी गांव के हैं। सब की संपर्क की भाषा हिंदी ही थी।  

अमानवीय अत्याचारों की गवाह सेल्यूलर जेल                               

लंच के बाद हम बस से सेल्यूलर जेल पहुंचे। अंग्रेज सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अमानवीय अत्याचार की मूक गवाह, इस जेल की नींव 1897 में  रखी गई थी तथा यह 10 वर्ष में बन कर तैयार हुई।  कैदियों पर नजर रखने के लिए एक ऊंचा टावर बना है, वहां से ऑक्टोपस की तरह सात शाखाएं तीन मंजिली कोठरियों की है,          कुल 694 कोठरियां यानी की सेल। अब तो इनमें से तीन शाखाएं ही बची हैं। बची कोठरियों का रखरखाव अच्छा है। गाइड प्रभावी तरीके से इतिहास बताता है। तीसरी मंजिल की  अंतिम कोठरी में वीर सावरकर को रखा गया था। कोठरी के ठीक सामने एक साथ तीन लोगों को फांसी दी जा सके, ऐसा फांसी घर सावरकर जी के मनोबल को तोड़ने के लिए था।  

कोठरियों की बनावट ऐसी थी कि बंद होने पर वहां से 12 घंटे तक कोई नजर नहीं आ सकता था। पीछे की तरफ ऊंचाई पर छोटा सा रोशनदान तथा आगे खाने की थाली सरकाने के लिए छोटी सी जगह बनी थी। जिधर एक कोठरी का दरवाजा होता था, उसके सामने वाली लाइन में वह पीछे का भाग होता था, वहां से कोई दूसरे व्यक्ति को नहीं देख पाता था।  उस काले समय की कल्पना करने के लिए कोठरी में आज भी कैदियों को दिया जाने वाला कंबल तथा भोजन के लिए धातु गंदा कटोरा रखा हुआ है। जेल के म्यूजियम में वह कोल्हू भी है, जहां बेल के बजाय कैद स्वतंत्रता सेनानियों को जोत कर, शाम तक 30 पाउंड तेल निकलवाया जाता था। लगातार न चल पाने पर कोड़ों की मार सहनी पड़ती थी। यहीं पर नारियल कूटने की भारी ओखली भी दिखाई देती है, जहां नारियल के रेशे से रस्सी मुंजनी पड़ती थी। भीषण गर्मी में पसीने से नहाए शरीर को ढंकने के लिए सजा के रूप में टाट के कपड़े पहनने को दिए जाते थे। अलग-अलग सजा के रूप में हाथ और पांव में लोहे की बेड़ियां पहनाई जाती थी।

सुंदर और सुरक्षित बीच

शाम को लाइट एंड साउंड शो शुरू होने में देर थी, अतः हम पास के कार्बन को बीच देखने चले गए। द्वीप सुंदर और साफ था, कुछ लोग तो वहां नहाए भी, खाने-पीने की चीज और  खरीदारी की चीज भी उपलब्ध थीं। यहां आने जाने का जैटी का किराया 3500 रुपया है। जेटी से उतरकर बस द्वारा रामनगर, लक्ष्मण नगर तथा बीच नंबर 7 राधा नगर गए। सभी बीच साफ-सुथरे तथा नहाने लायक हैं।  राधा नगर बीच सबसे लंबा है। यहां आधा किलोमीटर तक कम गहराई होने एवं लहरें अधिक तेज ना होने से, स्नान के लिए इसे विश्व के प्रथम पांच दीपों के रूप में गिना जाता है।  यहां स्नान और फोटोग्राफी का आनंद लेने के बाद भोजन और फल लिए।     

समुद्र में स्पोर्ट्स एक्टिविटी

समुद्र में तरह-तरह की स्पोर्ट्स एक्टिविटी भी होती हैं। स्नोडिंग नाम से एक खेल में ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ एक या दो अटेंडेंट सहित पानी में गहरे समुद्र के तल तक जाया जा सकता है। पानी के भीतर इस यात्रा में समुद्र के भीतर की वनस्पति, मछलियां व कोरल  अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। इसका शुल्क लगभग1000 से 4000 रुपए है।  लौटते समय रास्ते में दिसंबर के महीने में भी आम के कुछ पेड़ों पर कच्चे आम देख आश्चर्य से भर उठे।   रात्रि को चिन्मय मिशन में श्रीश्री रविशंकर जी का ध्यान शिविर चल रहा था।  नीचे के हाल में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण हेतु अक्षत वितरण के लिए बैठक का आयोजन था। इसमें माननीय इंद्रेश जी का उद्बोधन सुनने का अवसर मिला।  

नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण                                       

अगले दिन 30 दिसंबर को अंडमान क्लब के सामने तिरंगा फहराया गया।  यह वही स्थान है, जहां द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी तथा आजाद हिंद फौज के सैनिकों ने अंग्रेजों से अंडमान द्वीप को मुक्त करवा लिया था।  आजाद हिंद फौज के कमांडर इन चीफ तथा अखंड एवं स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था।  यहां से हम एक रैली के रूप में तिरंगे के साथ ‘भारत माता की जय’, ‘वंदे मातरम’, ‘सुभाष बोस अमर रहें’ तथा ‘भारत माता फिर से अखंड हो’ का उद्घोष करते हुए मरीना पार्क स्थित नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण हेतु पहुंचे। यहीं से हम फ्रीगंज के शहीद स्मारक, बलिदान वैदी भी गए।  

मिट्टी तिलक योग्य

लंच के बाद शाम को चिड़िया टापू गए।  जंगल तो घना और हरा-भरा था पर मुझे तो चिड़िया दिखाई दी नहीं दी, हां अपना साहित्य मुफ्त में वितरण कर ईसाइयत का प्रचार करते रंगे सियार जरूर दिखे। स्थानीय लोगों ने बताया कि जावा जनजाति में धर्मांतरण का कुचक्र चल रहा है।  द्वीप दर्शनीय, मनोहर और मनोरम तो है ही, स्वतंत्रता संग्राम में शहीद होने वाले तथा काला पानी की असहनीय यात्रा सहने वाले आजादी के दीवानों की भूमि होने से पlवन भी है। यहां की मिट्टी तिलक लगाने योग्य है।  इसलिए हर भारतीय को एक बार यहां जरूर जाना चाहिए।