-हिंदुओं का प्रमुख प्राचीन तीर्थ
-चारधाम प्रवेश के लिए केंद्र बिंदु
हरिद्वार हिंदुओं का प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ है। हरिद्वार का अर्थ है ‘हरि (ईश्वर) का द्वार’।
गंगा नदी को भगीरथ कठोर तपस्या कर पृथ्वी पर लाए थे, तभी से इस तीर्थ की मान्यता
है। समुद्र मंथन के बाद जब धनवंतरि जी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए तो राक्षस अमृत
कलश पाना चाहते थे। आपाधापी में अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी पर जा गिरी। जहां-जहां
ये बूंदें गिरी, हरिद्वार भी उन स्थानों में से एक है। हरिद्वार में जहां अमृत की बूंदें गिरी थी,
वह जगह हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। हर की पैड़ी को हरिद्वार का सबसे
पवित्र घाट माना जाता है। मान्यता है कि यहां स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह
देवभूमि चारधाम अर्थात बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के प्रवेश के लिए एक
केंद्र बिंदु है। हरिद्वार में अनेक दर्शनीय मंदिर हैं और प्राकृतिक सौन्दर्य तो बिखरा पड़ा है।
हरिद्वार, उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा सनातन (हिन्दुओं) का
प्रमुख तीर्थ है। प्राचीन नगरी हरिद्वार हिंदुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। गोमुख
(गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा कर गंगा नदी हरिद्वार में सर्वप्रथम मैदानी क्षेत्र में
प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है
वह स्थान जहां पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार नाम का संभवतः प्रथम
प्रयोग पद्मपुराण में हुआ है।
हरिद्वार का इतिहास बहुत पुराना है और इसे कई नामों से जाना जाता है। ईश्वर का प्रवेश
द्वार कहे जाने वाले हरिद्वार को मायापुरी, कपिला और गंगाधर के नाम से भी जाना जाता
है। इस पवित्र नगर को भारत की सात प्राचीन नगरियों (सप्तपुरी) में से एक माना गया है।
हरिद्वार में ही विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती होती है। शांतिकुंभ वह स्थान है, जहां गुरु
विश्वामित्र ने घोर तप किया था। कपिल मुनि ने भी यहां तपस्या की थी, इसलिए इस स्थान
को कपिलास्थान भी कहा जाता है। हरिद्वार चार स्थानों में से एक है; जहां हर छह साल
बाद अर्ध कुंभ और हर बारह वर्ष बाद कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस दौरान लाखों
की संख्या में श्रद्धालु दुनिया भर से आते हैं और श्रद्धापूर्वक गंगा जी में स्नान करते हैं।
प्राचीनतम जीवित शहरों में से एक होने के नाते, हरिद्वार का प्राचीन हिंदू शास्त्रों में भी
उल्लेख है।
प्रकृति प्रेमियों के लिए हरिद्वार स्वर्ग सा सुंदर स्थान है। हरिद्वार भारतीय संस्कृति और
सभ्यता का एक बहुरूपदर्शन प्रस्तुत करता है। यह चार धाम यात्रा के लिए प्रवेश द्वार भी है
(उत्तराखंड के चार धाम है:- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री)। इसलिए भगवान
शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार के नाम
से पुकारते हैं, हर अर्थात शिव (केदारनाथ) और हरि अर्थात् विष्णु (बद्रीनाथ) तक जाने का
द्वार।
दर्शनीय धार्मिक स्थल
अत्यंत प्राचीन काल से हरिद्वार में पांच तीर्थों की विशेष महिमा बताई गई है:-
गंगाद्वारे कुशावर्ते बिल्वके नीलपर्वते।
तथा कनखले स्नात्वा धूतपाप्मा दिवं व्रजेत।।
(अर्थात गंगाद्वार, कुशावर्त, बिल्वक तीर्थ, नील पर्वत तथा कनखल में स्नान कर पापरहित
हुआ मनुष्य स्वर्गलोक को जाता है।)
हरिद्वार (मुख्य) के दक्षिण में कनखल तीर्थ है, पश्चिम दिशा में बिल्वकेश्वर या कोटितीर्थ है,
पूर्व में नीलेश्वर महादेव तथा नील पर्वत पर ही सुप्रसिद्ध चंडीदेवी, अंजनादेवी आदि के
मंदिर हैं तथा पश्चिमोत्तर दिशा में सप्तगंग प्रदेश या सप्त सरोवर (सप्तर्षि आश्रम) है। इन
स्थलों के अतिरिक्त भी हरिद्वार में अनेक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं। सर्वाधिक दर्शनीय और
महत्वपूर्ण तो यहां गंगा की धारा ही है।
हर की पैड़ी
पैड़ी का अर्थ है सीढ़ी कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि ने यहीं तपस्या
कर अमर पद पाया था। भर्तृहरि की स्मृति में राजा विक्रमादित्य ने यह कुंड तथा पैड़ियां
बनवाई थीं। इनका नाम हरि की पैड़ी इसी कारण पड़ गया। यही हरि की पैड़ी बोलचाल
में हर की पौड़ी हो गया। यह हरिद्वार का मुख्य स्थान है। मुख्यतः यहीं स्नान करने श्रद्धालु
आते हैं। एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार यहां धरती पर भगवान विष्णु आए थे।
धरती पर भगवान विष्णु के पैर पड़ने के कारण इस स्थान को हरि की पैड़ी कहा गया। हर
की पैड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है। संध्या समय गंगा देवी की हर की पौड़ी पर की
जाने वाली आरती महत्त्वपूर्ण अनुभव है।
चंडीदेवी मंदिर
माता चंडीदेवी का यह सुप्रसिद्ध मंदिर गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर शिवालिक श्रेणी के
नील पर्वत के शिखर पर विराजमान है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचत सिंह ने 1929 ई.
में बनवाया था। स्कन्द पुराण के अनुसार स्थानीय राक्षस राजाओं शुम्भ-निशुम्भ के
सेनानायक चंड-मुंड का वध देवी चंडी ने यहीं किया था, जिसके बाद इस स्थान का नाम
चंडीदेवी पड़ गया। मान्यता है कि मुख्य प्रतिमा की स्थापना आठवीं सदी में आदि
शंकराचार्य ने की थी। मंदिर चंडीघाट से 3 किमी दूर स्थित है। रोपवे सुविधा आरंभ हो जाने
से अधिकांश यात्री सुगमतापूर्वक उसी से यहाँ जाते हैं, लेकिन दर्शन के लिए लंबी कतार का
सामना करना पड़ता है। माता चंडी देवी के भव्य मंदिर के दूसरी ओर संतोषी माता का
मंदिर भी है। साथ ही एक ओर हनुमान जी की माता अंजना देवी का मंदिर तथा हनुमान जी
का मंदिर भी बना है।
मनसा देवी मंदिर
हर की पैड़ी से पश्चिम की ओर शिवालिक श्रेणी के एक पर्वत-शिखर पर मनसा देवी का
मंदिर है। मुख्य मंदिर में दो प्रतिमाएं हैं, पहली तीन मुखों व पांच भुजाओं के साथ जबकि
दूसरी आठ भुजाओं के साथ। मनसा देवी के मंदिर तक जाने के लिए भी रोपवे की सुविधा
आरंभ हो चुकी है। मंदिर तक जाने के लिए सुगम पैदल मार्ग भी है। यहां चढ़ाई सामान्य है।
सड़क से 187 सीढ़ियों के बाद लगभग 1 किलोमीटर लंबी पक्की सड़क का निर्माण हो चुका
है, जिस पर युवाओं के अलावा बच्चे एवं बुजुर्ग भी रुकते हुए सुगमता से मंदिर तक पहुंच
जाते हैं।
माया देवी मंदिर
माया देवी (हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी) का संभवतः 11 वीं शताब्दी में बना यह प्राचीन
मंदिर सिद्धपीठ माना जाता है। इसे देवी सती की नाभि और हृदय के गिरने का स्थान कहा
जाता है। यह उन कुछ प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो अब भी नारायणी शिला व भैरव
मंदिर के साथ खड़े हैं।
भारतमाता मंदिर
वैष्णो देवी मंदिर से कुछ ही आगे भारतमाता मंदिर है। इस बहुमंजिले मंदिर का निर्माण
स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने करवाया है। अपने ढंग का निराला यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है।
इसकी विभिन्न मंजिलों पर शूर मंदिर, मातृ मंदिर, संत मंदिर, शक्ति मंदिर तथा भारत
दर्शन के रूप में मूर्तियों तथा चित्रों के माध्यम से भारत की बहुआयामी छवियों को रूपायित
किया गया है। ऊपर विष्णु मंदिर तथा सबसे ऊपर शिव मंदिर है।
सप्तर्षि आश्रम/ सप्त सरोवर
भारत माता मंदिर से ऑटो के माध्यम से आसानी से सप्तर्षि आश्रम तक पहुंचा जा सकता
है। सड़क की दाहिनी ओर सप्त धाराओं में बंटी गंगा की निराली प्राकृतिक छवि दर्शनीय है।
कहा जाता है कि यहां सप्तर्षियों ने तपस्या की थी और उनके तप में बाधा न पहुंचाने के
उद्देश्य से गंगाजी सात धाराओं में बंटकर आगे से बह गई थी। गंगा की छोटी-छोटी प्राकृतिक
धारा की शोभा दर्शनीय है। सड़क की दूसरी ओर सप्तर्षि आश्रम का निर्माण किया गया है।
मुख्य मंदिर शिवजी का है और उसकी परिक्रमा में सप्त ऋषियों के छोटे-छोटे मंदिर दर्शनीय
हैं। अखंड अग्नि प्रज्ज्वलित रहती है और कुछ-कुछ दूरी पर सप्तर्षियों के नाम पर सात कुटिया
बनी हैं, जिनमें आश्रम के लोग रहते हैं।
शांतिकुंज /गायत्री शक्तिपीठ
सुप्रसिद्ध मनीषी श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित गायत्री परिवार का मुख्य केंद्र शांतिकुंज हरिद्वार से ऋषिकेश के मार्ग में विशाल परिक्षेत्र में स्थित है। यह आधुनिक युग में
धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियों का अन्यतम कार्यस्थल है। यहां का सुचिंतित निर्माण तथा
व्यवस्था सभी श्रेणी के दर्शकों-पर्यटकों के मन को मोहित करती है। यह संस्थान मुख्यत:
श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तकों तथा उनकी प्रेरणा से चल रही पत्रिकाओं के
प्रकाशन का कार्य भी करता है। शोधकार्य भी इस संस्थान के अंतर्गत चलता रहता है।
कनखल
हरिद्वार की उपनगरी कहलाने वाला कनखल; हरिद्वार से 3 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में
है। यहां विस्तृत आबादी एवं बाजार है। आबादी वाले तीर्थस्थलों में हरिद्वार का सबसे
प्राचीन तीर्थ कनखल ही है। विभिन्न पुराणों में इसका नाम उल्लिखित है। गंगा की मुख्यधारा
से हर की पैड़ी में लाई गई धारा कनखल में पुनः मुख्यधारा में मिल जाती है। महाभारत के
साथ अनेक पुराणों में कनखल में गंगा विशेष पुण्यदायिनी मानी गई है। इसलिए यहां गंगा-
स्नान का विशेष महात्म्य है। कनखल में ही दक्ष ने यज्ञ किया था।
पारद शिवलिंग
कनखल में श्रीहरिहर मंदिर के निकट ही दक्षिण-पश्चिम में पारद शिवलिंग का मंदिर है। यहां
पारद से निर्मित 151 किलो का शिवलिंग है। मंदिर के प्रांगण में रुद्राक्ष का एक विशाल वृक्ष
भी है जिस पर रुद्राक्ष के अनेक फल लगे रहते हैं।
कैसे पहुंचें
ट्रेन और सड़क के रास्ते हरिद्वार पहुंचा जा सकता है। देश के प्रमुख शहरों से यहां के लिए ट्रेनें
और बसें मिल सकती हैं। अपने वाहन से भी हरिद्वार पहुंचा जा सकता है। हरिद्वार में हवाई
अड्डा नहीं है। निकटतम हवाई अड्डा हरिद्वार से 52 किमी दूर देहरादून में है। वहां से टेक्सियों
के माध्यम से हरिद्वार पहुंचा जा सकता है।