‘राजा राम सरकार’ जहां परमप्रिय प्रजा के साथ विराजते हैं
श्रीराम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्र नाम ततुल्यम श्री राम नाम वरानने।।
इंट्रो
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, श्री हरि विष्णु के दस अवतारो में से सातवें अवतार हैं। सोलह गुणों, बारह कलाओं के स्वामीश्रीराम का जन्म लोक कल्याण और मानव जाति हेतु एक आदर्श प्रस्तुत करने के लिए हुआ। श्रीराम करुणा, त्याग और समर्पण की मूर्ति माने जाते हैं, इसीलिए उन्हें करुणानिधि भी कहा गया है। क्या आप जानते हैं अयोध्या के अलावा वह कौनसा स्थान है, जहां श्री राम सपरिवार निवास करते हैं। वह स्थान है- ‘ओरछा धाम’। अयोध्या प्रभु श्रीराम की जन्म भूमि है, इसीलिए सनातन संस्कृति में उसका अपना धार्मिक महत्व और स्थान है। भक्तों के हृदय में अयोध्या का विशिष्ट स्थान होना स्वाभाविक है, परंतु ‘ओरछा’ भी उतने ही आदर और सम्मान का पात्र है।
मध्यप्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है ‘ओरछा’। ओरछा का इतिहास 600 वर्ष प्राचीन है। सन 1500 के आसपास यह बुंदेलखंड क्षेत्र में बेतवा नदी के किनारे बसाया गया था। ‘ओरछा धाम’ वह स्थान है जहां भगवान श्री राम नहीं, बल्कि ‘राजा राम सरकार’ अपनी परमप्रिय प्रजा के साथ विराजते हैं। ओरछा के बारे जानने के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि यहां श्री राम, राजा के रूप में किस प्रकार पूजनीय हुए। कहा जाता है कि यहां के राजा रुद्रप्रताप सिंह कृष्ण भक्त थे, और महारानी राम भक्त। एक बार महाराज ने महारानी के सामने श्री कृष्ण उपासना के लिए वृंदावन चलने की इच्छा प्रकट की, जिसे महारानी ने अस्वीकार कर दिया। क्रोधवश महाराज ने रानी की भक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कह दिया कि भक्ति में शक्ति हो तो अयोध्या से श्री राम को ओरछा लाकर दिखाओ। इस चुनौती स्वीकार कर महारानी ने अयोध्या प्रस्थान किया और वहां सरयू किनारे साधना में लीन हो गई।
कठोर तपश्चर्य के पश्चात भी जब भगवान ने दर्शन नहीं दिए तो निराश रानी ने प्राण त्यागने के इरादे से नदी में छलांग लगा दी। जल की अतल गहराइयों में उन्हे प्रभु श्री राम के दर्शन हुए। रानी ने अपना मंतव्य उनके समक्ष रखा। जैसा कि विदित है भगवान भक्त के अधीन होते हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को भी झुकना पड़ा लेकिन उन्होंने रानी के समक्ष तीन शर्तें रखीं। प्रथम शर्त थी कि वे पुष्य नक्षत्र में चलेंगे, यात्रा पैदल और संतों के साथ होगी। दूसरी शर्त रानी जहां उन्हें एक बार विराजित कर देंगी, वे वहीं स्थापित हो जाएंगे और तीसरी शर्त वहां राजशाही समाप्त होकर उनकी सत्ता की स्थापना होगी। रानी ने तीनों शर्तें सहर्ष स्वीकार कर लीं।
इस प्रसंग के बाद चूंकि अयोध्यानाथ के बिना अयोध्या और अयोध्यावासी अनाथ हो जाते, इसलिए प्रभु श्रीराम ने निर्णय किया कि वे पूर्ण दिवस ओरछा में रहेंगे और रात्रि विश्राम अयोध्या में करेंगे। इस योजना के साथ महारानी गणेश कुंवर ने श्रीराम का विग्रह शिरोधार्य कर ओरछा प्रस्थान किया। आठ माह की कठिन यात्रा कर महारानी ने ओरछा में प्रवेश किया, परंतु विधि का विधान या प्रभु श्री राम की माया, रानी यह भूल गई कि श्रीराम ने कहा था, वे उन्हें जहां रख देंगी श्री राम वहीं स्थापित हो जाएंगे। महारानी ने उनका विग्रह महल के रसोई घर में रख दिया, क्योंकि जिस भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा था उसके पूर्ण होने में कुछ समय शेष था। कार्य पूर्ण होने पर जब श्रीराम का विग्रह वहां स्थापित करने के लिए उठाया गया, तब अथक प्रयासों के बावजूद विग्रह हिला तक नहीं। यही कारण है कि जो विशाल और भव्य मंदिर प्रभु श्रीराम के लिए निर्मित किया गया था, वह वीरान रह गया। वर्तमान में वह चतुर्भुज मंदिर के नाम से जाना जाता है।
वैसे यह लीला श्री राम की ही रची प्रतीत होती थी, कदाचित श्री राम उस स्थान से कहीं और जाना नहीं चाहते थे, जहां उनकी माता का निवास हुआ करता था। कहा जाता है कि वनवास जाते समय माता कौशल्या को श्रीराम ने यह विग्रह दिया था और माता इसी विग्रह को बाल भोग लगाया करती थीं। श्री राम के अयोध्या आगमन के पश्चात उन्होंने यह विग्रह सरयू में विसर्जित कर दिया था, जिसे महारानी ने ओरछा में स्थापित किया। एक मान्यता यह भी है कि जिस संवत में प्रभु श्रीराम का यहां आगमन हुआ, उसी दिन श्रीरामचरित मानस भी पूर्ण हुआ था। सम्पूर्ण विश्व में यही एकमात्र स्थान है, जहां श्रीराम का ‘राजा राम’ के रूप में पूजन किया जाता है। मंदिर के चारों ओर हनुमान जी के मंदिर स्थापित हैं। मंदिर में अनुशासन अनिवार्य है, क्योंकि यहां ‘राजा राम सरकार’ की मर्यादा है। बेल्ट पहनकर प्रवेश नहीं किया जा सकता, केवल राजा राम की सेवा में तैनात सिपाही ही बेल्ट पहन सकता है। राज दरबार में कमर कसकर प्रवेश नहीं कर सकते। एक और विशेषता राजा राम को दिया जाने वाला गार्ड ऑफ ऑनर है, जो मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तैनात सिपाहियों द्वारा दिया जाता है। ओरछा में सबसे महत्वपूर्ण परम अलौकिक, आनंदमई क्षण वह होता है जब रात्रि में शयन आरती के पश्चात पुजारी जी भक्तों के साथ भजन-कीर्तन करते हुए फूलों पर चलकर राजा राम को पाताल हनुमान के पास ले जाया जाता है, ताकि वे श्रीराम जी को अयोध्या ले जा सकें। उस समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे स्वयं श्रीराम वहां उपस्थित हैं।
चूंकि ओरछा एक ऐतिहासिक नगर रहा है, इसीलिए इसकी अन्य कई विशेषताएं भी हैं। श्रीराम मंदिर के चारों ओर रामदूत हनुमान जी के मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त मुगलों और बुंदेले शासकों की मित्रता का प्रतीक जहांगीर महल, राजमहल, राय प्रवीण महल, शीश महल, लक्ष्मीनारायण मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, फूलबाग, हरदौल की समाधि और कल कल बहती बेतवा नदी का मनोरम दृश्य हर किसी को सम्मोहित करने के लिए पर्याप्त है। श्रीराम कृपा का प्रत्यक्ष अनुभव तो आप ओरछा पहुंचकर ही महसूस कर पाएंगे।
-Adv. राजेश्वरी भट्ट,
बुरहानपुर (मप्र)