• चारधामों और सप्तपुरी में से एक है पवित्र नगरी
  • 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भी
  • द्वारकाधीश मंदिर का सौन्दर्य अलौकिक-अद्वितीय

द्वारका गुजरात के देवभूमि द्वारका ज़िले में स्थित प्राचीन नगर है। गोमती नदी और अरब सागर के किनारे ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी तट पर बसा यह नगर हिंदुओं के चार धाम और सप्तपुरी में से भी एक है। द्वारका भगवान श्रीकृष्ण के प्राचीन राज्य द्वारका का ही स्थान है। मान्‍यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्‍ण का महल यहीं पर हुआ करता था। द्वारका के न्यायाधीश भगवान श्रीकृष्‍ण ही थे। इसलिए भगवान श्री कृष्‍ण को यहां भक्‍तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं।

महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल होने के साथ देश के सात सबसे प्राचीन शहरों में से एक द्वारका हिन्दुओं के सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में शामिल है तथा प्रमुख चार धामों में से एक है। यह सात पुरियों में एक पुरी है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार पश्चिम में समुद्र के किनारे बसी द्वारका नगरी को भगवान श्रीकॄष्ण ने बसाया था। यह श्रीकृष्ण की कर्मभूमि है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ पर राज उन्होने द्वारका में किया। यहीं से उन्होंने सारे देश की बागडोर संभाली। पांडवों को सहारा दिया। धर्म की जीत कराई और शिशुपाल और दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं को मिटाया। बड़े से बड़े राजा यहां भगवान श्री कृष्ण से सलाह लेने आते थे। इस स्थान का धार्मिक महत्व तो है ही, रहस्य भी कम नहीं है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की शरीर छोड़ने के साथ उनकी बसाई हुई यह नगरी समुद्र में समा गई। आज भी उस नगरी के अवशेष मौजूद हैं। द्वारका में विशेष रूप से द्वारकाधीश मंदिर, रुक्मिणी देवी मंदिर, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, बेट द्वारका, समुद्र तट और द्वारका लाइट हाउस आदि दर्शनीय स्थान हैं।

द्वारकाधीश मंदिर

द्वारकाधीश मंदिर जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक चालुक्य शैली की वास्तुकला है, जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। द्वारका शहर का इतिहास महाभारत में द्वारका साम्राज्य के समय का है। पुरातात्त्विक खोज में सामने आया है कि यह मंदिर करीब 2,000 से 2200 साल पुराना है। इस मंदिर की इमारत 5 मंजिला है और इसकी ऊंचाई 235 मीटर है। यह इमारत 72 स्तंभों पर टिकी है। मंदिर चूना पत्थर और रेत से निर्मित अपने आप में भव्य और अद्भुत है। माना जाता है कि 2200 साल पुरानी वास्तुकला उनके पोते वज्रनाभ द्वारा बनाई गई थी, जिन्होंने इसे भगवान श्री कृष्ण द्वारा समुद्र से प्राप्त भूमि पर बनाया था। मंदिर के भीतर अन्य मंदिर हैं जो सुभद्रा, बलराम और रेवती, वासुदेव, रुक्मिणी और कई अन्य को समर्पित हैं। स्वर्ग द्वार से मंदिर में प्रवेश करने से पहले भक्तों को गोमती नदी में डुबकी लगानी होती है। जन्माष्टमी पर द्वारकाधीश मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा के लिए यहां पहुंचते हैं। सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक और शाम 5 बजे से रात 9.30 तक मंदिर दर्शनों के लिए खुला रहता है।

बेट द्वारका

बेट द्वारका वहा जगह है जहां भगवान श्री कृष्ण ने अपने प्रिय भक्त नरसी की हुंडी भरी थी।
बेट द्वारका के टापू के पूर्वी कोने में हनुमान जी का बड़ा मंदिर है। ऊंचे टीले पर बने इस मंदिर को हनुमान जी टीला कहते हैं। आगे बढ़ने पर गोमती द्वारका की तरह बड़ी चहारदीवारी यहां भी है। इस घेरे के भीतर पांच बड़े महल हैं। दो और तीन मंजिला इन भवनों में पहला और सबसे बड़ा महल श्रीकृष्ण का है। इसके दक्षिण में सत्यभामा और जाम्बवती के महल हैं। उत्तर में रुक्मिणी और राधा के महल हैं। पांचों महलों की सजावट देख आंखें चकाचौंध हो जाती हैं। इन मंदिरों के दरवाजों और चौखटों पर चांदी के पतरे चढ़े हैं। भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति और चारों रानियों के सिंहासनों पर भी चांदी मढ़ी है। मूर्तियों का श्रृंगार भी अद्भुत है। सभी को हीरे, मोती और सोने के गहने पहनाए गए हैं। असली जरी के कपड़ों से उन्हें सजाया गया है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग

द्वारका में स्थित नागेश्वर मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह गुजरात में सौराष्ट्र के तट पर गोमती द्वारका और बैट द्वारका द्वीप के बीच मार्ग पर है। यहां के मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जिन्हें नागेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार जो लोग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग में प्रार्थना करते हैं, वे सभी विषों, सांपों के काटने और सांसारिक आकर्षण से मुक्त हो जाते हैं। अन्य नागेश्वर मंदिरों के अलावा यहां की मूर्ति या लिंग दक्षिण दिशा की ओर है। नागेश्वर मंदिर का प्रमुख आकर्षण भगवान शिव की 80 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा है। नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व इस तथ्य से उपजा है कि इसे भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहला माना जाता है। महा शिवरात्रि पर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भव्य उत्सव मनाया जाता है।

रुक्मिणी देवी मंदिर

भगवान श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी को समर्पित यह सुंदर मंदिर शहर के बाहर सिर्फ 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 12वीं सदी में निर्मित इस मंदिर की वास्तुशिल्प को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। इस मंदिर के पीछे हिंदू पौराणिक कहानी की शुरुआत रुख्मिणी देवी और उनके पति भगवान श्री कृष्ण से होती है, जब रास्ते में रुक्मिणी देवी अपने पति की मदद से गंगा में अपनी प्यास बुझाने के लिए रुकती हैं। ऋषि दुर्वासा के पानी मांगने पर देवी रुक्मिणी ने उन्हें पानी देने से मना कर दिया, तब ऋषि ने उन्हें भगवान श्री कृष्ण से अलग होने का श्राप दे डाला, जिस वजह से यह मंदिर द्वारकाधीश मंदिर से कुछ दूरी बनाया गया है

द्वारका लाइटहाउस

मंदिरों और अन्य पूजा स्थलों के अलावा द्वारका में किले और स्मारक भी हैं। द्वारका लाइट हाउस मुख्य शहर से साढ़े तीन किलोमीटर दूर स्थित है। इस 43 मीटर टावर का निर्माण 1962 में सौराष्ट्र तट के पश्चिमी भाग रूपेन क्रीक पर किया गया था। बाद में कोहरे के सिग्नल के रूप में काम करने के लिए साउंड हॉर्न उपकरणों और वाइब्रेटर की शुरुआत के लिए 1964 में एक आरसीसी बाफ़ल दीवार की शुरुआत की गई। आज भी यह लाइट हाउस नाविकों के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है और शाम के समय द्वारका शहर से इसकी शक्तिशाली चमक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। आगंतुकों के लिए यह केवल शाम 4 बजे से शाम 6 बजे तक चालू रहता है, इस संरचना का शानदार वास्तुशिल्प डिजाइन अद्भुत दृश्य है। लाइटहाउस के शीर्ष से द्वारका शहर और अरब सागर का मनोरम दृश्य देख सकते हैं।