जयपुर। औदीच्य समाज की संरक्षिका, संस्कृत की प्रकांड विद्वान और समाज के कार्यों में सदैव अग्रणी रहनी वाली डॉ. राजेश्वरी भट्ट का जन्म जयपुर के संभ्रांत तिवाड़ी परिवार में हुआ। आप काम आयु से ही होनहार एवं विलक्षण प्रतिभा की धनी रही हैं। तिवाड़ी परिवार के पितामह श्री प्यारेलाल जी की सुयोग्य पुत्री डॉ. राजेश्वरी भट्ट संस्कृत साहित्य की प्रकांड विदुषी के रूप में अपनी अमिट छाप रखती हैं। आपको वेदमंत्र, दुर्गापाठ, रुदपाठ एवं अन्य कई वेदोक्त मंत्रों की सिद्ध कंठस्थ विद्या प्राप्त है। मां शारदे का आप पर पूर्ण आशीर्वाद है। आपके स्वभाव में विनम्रता, दयालुता एवं दानशीलता के गुण कूट-कूट के भरे हैं। वैसे पूरा तिवाड़ी परिवार ही उच्च शिक्षित होने के साथ उच्च पदों पर रहकर सामाजिक सेवा में भी हमेशा से अग्रणी रहा है। इनमें औदीच्य समाज के प्रथम संरक्षक श्री देवीशंकर जी तिवाड़ी साहब का नाम आज भी आदर एवं श्रद्धा के साथ लिया जाता है। राजेश्वरीजी का विवाह डॉ. गंगाधर जी भट्ट से हुआ, जो स्वयं संस्कृत के विद्वान प्रोफेसर रहे तथा राजस्थान विवि में संस्कृत विभाग के शीर्ष पद से सेवानिवृत्त हुए। राजेश्वरीजी द्वारा अनायास ही लिए गए संकल्प की पूर्णता के तहत भव्य चतुर्मुखनाथ महादेव मंदिर ने आकार लिया। औदीच्य समाज इस तरह के कार्यों के लिए आपका हमेशा यशोगान करेगा। सभी औदीच्य बंधु भगवान चतुर्मुखनाथ महादेव से आपके भावी स्वस्थ जीवन की सुखद कामना करते हुए समस्त तिवाड़ी परिवार का हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं।

– सत्येन्द्र पंड्या